यो सहस्सं सहस्सेन, संगामे मानुसे जिने।
एकं च जेरययमत्तानं, स वे संगामजुत्तमो ।।
- धम्मपद
- यु्द्धभूमि में चाहे कोई सहस्र व्यक्तियों को सहस्र बार जीत ले, पर सच्चा विजेता वही है जो अपने आपको जीत ले।
क्या मुसलमानो के लिए विपश्यना का अभ्यास करना संभव है
अधिकांश मुसलमानों किसी भी ध्यान-पद्धति को अपनाते हुए इसलिए हिचकिचाते हैं कि कहीं यह उनके धार्मिक सिद्धातों के विरूद्ध न हो। अरब समाचार के धर्म-संपादक एवं मध्य- पूर्व के जाने-माने धर्मज्ञाता आदिल सलाही ने हाल ही में अपना यह मत दिया कि कोई भी साधना-पद्धति जो सर्वथा संप्रदाय-निरपेक्ष हो, उसे अपनाने में मुसलमानों को कोई आपत्ति नही होनी चाहिए। शेख आदिल का यह भी कहना है कि साधना करने के लिए किसी कर्मकांड की आवश्यकता नही होती है। इसलिए इस्लाम धर्म में जो कुछ भी वांछित है उसे किसी दूसरे संप्रदाय की क्रिया -पद्धति अपनाये बिना भी हासिल किया जा सकता है।
धर्म, सत्य, धर्मोपदेश, धर्मपथ ये सभी नदी के समान प्रवहमान हैं। नदी सभी के लिए प्रवाहित होती है, चाहे वह मुस्लिम, हिंदू, सिख, ईसाई,बौद्ध, जैन या फिर किसी अन्य तथाकथित धर्म से संबंधित हो। वह स्त्री अथवा पुरूष, गोरे अथवा काले, भूरे या पीतवर्णी मनुष्यों में भेदभाव नहीं करती। धर्म- नदी विद्वान एवं मूर्ख, धनी एवं निर्धन सभी के लिए समान रूप से बहती है। सत्य तो सभी के लिए एक-समान होता है। आओ और देखो । दस दिवस के लिए ही सही,इस धर्मगंगा के तीर पर आकर बैठो और स्वयं परखो ।
विभिन्न तथाकथित धर्मों के अनुयायियों ने विपश्यना साधना का अभ्यास करके यह जाना है कि विपश्यना एक ऐसी पद्धति है जो कि मानवीय दु:खों के मूल कारणो का जड़ से उन्मूलन कर सकती है और सुखी, स्वस्थ एवं सार्थक जीवन की राह दिखा सकती है।
बहुत से मुसलमानों ने विपश्यना पद्धति के अभ्यास से प्राप्त लाभ को स्वयं अनुभव किया है। ऐसे मुसलमानों की एक बड़ी संख्या ईरान में है जिनमें से कुछ के उद्गार इस लेख में प्रस्तुत हैं।
धम्मिगिरि में हुए साधना-शिविर के उपरांत कुछ ईरानी मुसलमानो द्वारा अभिव्यक्त संक्षिप्त टिप्पणियां इस प्रकार हैं :-
- विपश्यना पू्र्णतया संप्रदाय-निरपेक्ष साधना-पद्धति है। इस पद्धति द्वारा प्रत्येक व्यक्ति मन एवं शरीर के विकारों से मुक्त होकर सर्वोच्च लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।
- महाविद्यालय के एक कटृर मुस्लिम शिक्षक ने कहा कि विपश्यना द्वारा अब मैं हर स्थिति को पहले से बेहतर समझ सकता हूं। मैं यहां पुन: आना चाहूंगा।
- पहले मैं सोचता था कि अंतर्मन की शांति क्या होती है, इसे मैं भली-भांति जानता हूं। किंतु इन दस दिनों में मैंने अपनी कल्पना से कहीं अधिक अनुभव किया है।
- यहां धम्मगिरी में साधक विपश्यना द्वारा उंची स्थितियों को प्राप्त कर लेते हैं।
- गोयन्काजी ने मुझे विपश्यना सिखायी जो मुझे जीवनपर्यंत और जीवनोपरांत लाभान्वित करती रहेगी।
-विपश्यना द्वारा मैंने अपने जीवन की राह को पा लिया है।
- विपश्यना शिविर के पश्चात मैं अपने भीतर हल्केपन और उर्जा का अनुभव करता हूं।मेरा मन भी साफ हो गया है। इस प्रकार की मन : स्थिति में सदा क्यों न रहा जाय मुझे विपश्यना का अभ्यास करना होगा।
-लंबे समय तक किसी ऐसी वस्तु की खोज करते हुए जो कि मुझे जीवन-भर लाभ दे सके, मुझे विपश्यना मिल गयी है। अब मैं संतुष्ट हूं।
-विपश्यना प्रत्येक समाज के लिए लाभकारी है। इसकी महत्ता इससे भी बढ़कर है।
- विपश्यना से मैं हर प्रकार के व्यसन से बाहर निकलने में समर्थ हो रहा हूं परिवारजन से मेरे संबंध भी सामंजस्यपूर्ण हो रहा हैं।
- मैंने अपनी सोचने-समझने की शक्ति को खो दिया था। मैं नहीं जानता था मैं क्या कर रहा हूं। मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी । मेरे परिवारजन मुझसे बहुत असंतुष्ट थे। मैं इधर-उधर अपना सपना गॅवाता और दूसरों में कमियां निकालता रहता । फिर मैं विपश्यना के संपर्क में आया। तब मैंने जाना कि मैं क्या कर रहा हूं और अपने जीवन को सुधारना शुरू किया।
- विपश्यना द्वारा मैं अपने ही भीतर स्वर्ग नरक के दर्शन कर सका।
-महाविघालय में मनोविज्ञान के शिक्षक : हम जानते हैं कि प्रत्येक कोशिका (cell) कुछ सूचना देती है लेकिन हम यह नहीं जानते कि यह काम कैसे करती है। विपश्यना द्वारा हमें इसकी जानकारी होने लगती है।
- एक प्राध्यापक : लंबे समय से मेरी पीठ में पीड़ा रहती थी। विपश्यना के दूसरे शिविर में अचानक मेरे शरीर में एक प्रकाश- सा फैल गया और पीड़ा नदारद हो गयी । सामान्य विज्ञान द्वारामैं इसकी व्याखा नही कर सकता किंतु अब मै बहुत स्वस्थ और हल्का अनुभव करता हूं। अनित्यता का अनुभव कर लेना और उसे भली-भांति समझ लेना, प्रतिदिन के जीवन के लिए बहुत बडी उपलब्धि है।
दो ईरानी साधकों के मॅु्ह-बोलते पत्र नीचे उद्धत किये जा रहे है-
- डॅा.अब्बास रूहबख्श, तेहरान का पत्र
विपश्यना ने मेरे भीतर उथल-पुथल मचा दी। पंद्रह वर्ष तक विभिन्न साधना-पद्धतियों का अध्ययन, अध्यापन एवं अनुभव करने के पश्चात मुझे गोयन्काजी द्वारा सिखायी जाने वाली साधना मिली जो कि मुझे अत्यंत लाभदायक लगी। मैं कई वर्षो तक योग का शिक्षक रह चुका हूं। मैंने बहुत से विद्यार्थियों को योग प्रशिक्षण भी दिया है। मैंने योग और साधना, इस विषय पर एक पुस्तक भी लिखी है। परंतु मैं अपने प्रयोगों के अंतिम चरण में विपश्यना तक पहॅुच पाया - विपश्यना जैसी कि श्री गोयन्काजी सिखाते हैं।
मैं आनापान की प्रकिया से परिचित था। इसका अभ्यास मैंने एक ध्यान-प्रक्रिया की भांति किया था। मुझे ध्यान केंद्रित करने के विभन्न बिंदु जैसे मंत्र, यंत्र, संगीत, दर्वेश नृत्य, इत्यादि का भी ज्ञान था। इस कारण मैंने शुरू-शुरू में विपश्यना को साधारण ध्यान -प्रक्रिया समझा , किंतु जब पहले ही शिविर के तीसरे दिवस मेरे भीतर तूफान उठा, तब मैंने विपश्यना को गंभीरता से लेना शुरू किया। तूफान के बीत जाने पर मैने बहुत शांति का अनुभव किया। उस समय मैंने गोयन्काजी की इस साधना के प्रभाव को समझा । प्रत्येक शाम के प्रवचन अत्यंत रूचिकर थे। ईरानी होने के कारण मैं पूर्व के अध्यात्म की गहराई से परिचित था और मेरी सदैव यह चेष्टा रही कि मैं सांसारिक सुखों से परे जा सकूं । मैंने इस नश्वर संसार को अंतिम सत्य की परछाई के रूप में देखा है। गोयन्काजी के शब्दों में मैंने अपने भावों की प्रतिध्वनि को सुना था जिससे मुझे बुद्ध की गहन विचारधारा और उसकी उपयोगिता पर दृढ़ विश्वास हो गया ।
मेरी दूसरी धम्मगिरि यात्रा में मेरे साथ तीस व्यक्ति गये थे जिनमें से अधिकांश योग के मेरे विघार्थी थे, जबकि इस तीसरी यात्रा में मेरे साथ साठ से भी अधिक व्यक्ति जा रहे हैं। इन्होंने साधना की विभिन्न विधियों को परखा है और अब ये अंतिम, किंतु सर्वोत्तम विधि का अनुभव करने जा रहे हैं। मैं अपनी शुभ कामनाएं गोयन्काजी और सभी साधकों के प्रति अभिव्यक्त करता हूं ।
- डॅा. मोहम्मद इयाजी, तेहरान का पत्र
मुझे हार्दिक प्रसन्नता है कि मुझे विपश्यना शिविर में भाग लेने का अवसर प्राप्त हुआ । पिछले वर्ष जब मैं धम्मगिरि पहॅुचा तब सर्वप्रथम मुझे बहुत शांति का अनुभव हुआ । दूसरे दिन जब शिविर आरंभ हुआ और हमने श्वास को देखना शुरू किया तव अचानक मुझे अपने सारे शरीर में विस्फोटक संवेदना अनुभव हुई जो कि वहुत व्याकुल करने वाली थी। कुछ समय तक यह संवेदना बनी रही । फिर जव मैं हॉल से बाहर आया तव न चाहते हुए भी पंद्रह मिनट तक रोया और उसके बाद मैंने स्वयं को मुक्त, रिक्त और हल्का अनुभव किया । इस प्रकार का अनुभव मुझे शिविर में बहुत बार हुआ ।
मेरा मन कृतज्ञता से भरा उठा क्योकि मुझे जीवन में पहली बार इतना अच्छा अनुभव हो रहा था । मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कि मैं आध्यात्मिक व्यक्ति हूं । मैं बहुत संतुष्ट था । मेरे मन में यह विचार भी उठा कि कितना अच्छा हो यदि ऐसा शिविर मेरे देश में भी लगे, जहां बहुत लोगों को इसकी आवश्यकता है । मैं भलीभांति जानता हूं और अनुभव करता हूं कि वह समय दूर नहीं है।
कुछ अन्य अनुभव :
- प्रीति बूबना अली , कला -निदेशक
दस दिन का पहला शिविर मेरे लिए एक विस्मयकारक अनुभव था ।
जब मैंने अपने मन पर काम करना आरंभ किया तब पहले दिन बहुत शंकाएं थी । किंतु अब दसवें दिन में बहुत शंकाएं थी । किंतु अब दसवें दिन मैं बहुत प्रसन्नता अनुभव कर रही हूं । संशय के सभी बादल छॅट गये है।
भविष्य में भी मैं धर्म में और अधिक पकना चाहूंगी । मैं चाहूंगी कि मेरे प्रियजन , और यहां तक कि शत्रु भी, धर्म ग्रहण करें ताकि संसार से दु :ख समाप्त हो जाय । दसवें दिन के अंत में मैंने धर्म की शरण ली जो कि सही मार्गदर्शन करेगा ।
यही धर्म है । इसका अभ्यास करें । प्रत्येक कदम आपको लक्ष्य के निकट ले जायगा ।
धर्म ने मुझे दिशा प्रदान की है और मुझे सुख से जीने की कला सिखायी है ।
- मोहम्मद रजा गरीब
मुझे अपने अनुभव आप सबके साथ बांटने में बहुत प्रसन्नता अनुभव हो रही है । हो सकता है इन्हे पढ़़कर कोई व्यक्ति अपने व्यसनों से बाहर निकल पाये ।
मुझे बीस वर्ष पूर्व अफीम लेने का व्यसन हो गया था । मैंने इसे दस बार छोडने का प्रयास किया किन्तु दो या तीन महीने से अधिक अवधि के लिए इसे नहीं छोड़ सका । अंतत : अपने संत्कर्मों के कारण १९९५ में मेरा विपश्यना से परिचय हुआ और नवंबर, १९९५ में मैने दस दिन के शिविर में भाग लिया । यह मेरा सौभाग्य था कि मुझे इतने करूणामय और प्रिय गुरू श्री गोयन्काजी मिले । अब दो वर्ष पश्चात भी मुझमें अफीम लेने की कोई ललक नहीं है । इसके अतिरिक्त भी मुझे इस साधना-विधि से बहुत लाभ हुए हैं । मैं प्रतिदिन सुबह-शाम ध्यान करता हूं और मैंने अपनी पत्नी और पुत्र की भलाई के लिए, उन्हें भी यह शिविर करने के लिए भेजा है ।
मैं पुन : गुरू जी, प्रबंधको, सहायकों एवं धम्मगिरि के हितैषी धर्मसेवकों को धन्यवाद देता हूं ।
सभी प्राणी सुखी हों ।
विपश्यना साधना प्रत्येक समुदाय एवं शाखा के मुसलमानों को अवसर प्रदान करती है कि वे रीति-रिवाजों से सर्वथा अलग एक साधना-विधि का अभ्यास कर सकें । यह साधना ही इस प्रकार की है जिसे अपनाने से प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह किसी भी संप्रदाय का क्यों न हो, अपने समुदाय का एक अच्छा सदस्य बन चुके हैं। उन्होंने ऐसी जीवन जीने की विधि खोज ली है जो न केवल एक मुसलमान के रूप में उनकी जीवन-शैली को उन्नत करती है अपितु उन्हें किसी दूसरे संप्रदाय की रीतियों को अपनाने के लिए बाध्य भी नहीं करती ।
शुद्ध धर्म कभी सांप्रदायिक नहीं हो सकता । वह केवल तीन बातें सिखाता है जो कि सभी के लिए मान्य एवं अनुकूल होती हैं । ये तीन बातें हैं- शील, समाधि और मन की शुद्धि । इसमें किन्हीं कटृर सांप्रदायिक धारणाओं को कोई स्थान नहीं है। यह विधि अपने आप में परिपूर्ण है । इसमें न कुछ जोड़ने की और न घटाने की आवश्यकता है ।
सारे विश्व में लोग लोभ, घृणा और भ्रम के कारण दु:खी हैं । यह दु:ख-विमुक्ति का मार्ग है । प्रत्येक जाति एवं संप्रदाय के अधिकाधिक लोग इस धर्म- सरिता के बहाव को अपने अनुभव से जानें और सच्चे सुख का आनंद प्राप्त करें ।
जिस प्रकार अपने शरीर की तंदरूस्ती और शक्ति के लिए योग के शारीरिक व्यायाम - आसान एवं प्राणायाम-सीखने और अभ्यास करने के लिए तुम्हें किसी अन्य सांप्रदायिक धर्म में दीक्षित नहीं होना पडता , उसी प्रकार अपने मन को स्वस्थ और बलवान बनाने के लिए मानसिक व्यायाम - आनापान एवं विपश्यना - सीखने और अभ्यास करने के लिए तुम्हे किसी अन्य सांप्रदायिक धर्म में दीक्षित होंने की आवश्यकता नहीं है ।
- सयाजी स़़० ना़० गोयन्का