Tuesday, July 28, 2015

विपश्यना साधना से सभी प्रकार के नशे के व्यसन से मुक्ति - आचार्य सत्यनारायण गोयन्का

                 पिछले 22 वर्षों के प्रयोग से यह बात स्पष्ट हुई है कि विपश्यना के अभ्यास से अन्य अनेक लौकिक और पारलौकिक अनुभूतियों के अतिरिक्त मानसिक व्यसनों से मुक्ति का बहुत महत्वपूर्ण लाभ होता है । मानव समाज के लिए नशे पते का व्यसन बहुत बड़ा अभिशाप हे । इससे वैयक्तिक जीवन तो नारकीय हो ही जाता है , पारवारिक और सामाजिक जीवन भी यातनाओं से भर उठता है । पश्चिम देशों की नयी पीढ़ी इस व्यसन की बुरी तरह शिकार हुई और अपने लिए ही नहीं बल्कि अपने समाज व राष्ट्र के लिए एक बड़ी चिन्ता का कारण बन गयी । नशा केवल मदिरा तक ही सीमित नहीं रहा । इसके अनेक प्रबल पैशाचिक रूप उभरने लगे । सभी देशों के समझदार लोग नयी पीढ़ी को इस भयानक रोग से मुक्ति दिलाने के लिए आतुर हो उठे ।
                आस्ट्रेलिया के पर्थ नगर का एक धनी व्यक्ति रिचार्ड हेंमर्सले भी इस दिशा में अत्यंत चिंतित हुआ , क्योंकि उसकी पांच संतानों में से वयस्क हुए तीन एक पुत्र - वह तीन पुत्रियां बुरी तरह व्यसन के गुलाम हो चुके थे । उन्हें व्यसन मुक्त करने के हर प्रयोग में वह निष्फल हो गया । उनकी हालत दिनों दिन बिगड़ती गयी । अपने बच्चों की यह दयनीय हालत देखकर उसका पितृ दिल कराह उठता था, पर लाचारी थी । उसने अनेक मनोचिकित्सकों की सहायता ली , जिन्होंने कई प्रकार के प्रयोग अनेक लोगों पर किए थे । उनके प्रयोग कुछ लोगों पर थोड़ा अच्छा असर लाते परंतु व्यसन की पराकाष्ठा पर पहुंची हुई उसकी संतान को कोई लाभ नहीं हुआ । उसने देखा कि इस मामले में केवल वही दुखी नहीं है बल्कि अनेक माता पिता अपनी संतान को सुधारने के लिए चिंतित हैं । पर उन्हें कोई राह नहीं सूझ रही है । सरकार भी चिंतित है, पर कोई संतोषजनक हल नहीं मिल रहा । इस व्यक्ति ने पहल करके समाज के अन्य लोगों का तथा सरकार का सहयोग लिया और बहुत सा धन लगाकर एक मनोवैज्ञानिक शोध केंन्द्र की स्थापना की , जिससे इस दिशा में कोई ठोस काम हो सके । इस संस्था ने अपने तरीके से कुछ काम शुरू किया । कुछ लोग जो व्यसन के प्रारम्भिक दौर में थे उन्हें लाभ भी हुआ परतु इसके बच्चों को इससे भी कोई लाभ न हो सका ।
                 संयोग से हिप्पी बना घूमता इसका बड़ा लड़का क्रिस जो कि पेशे से स्वयं एक डाक्टर है भारत आ गया और किसी से विपश्यना के बारे में सुनकर शिविर में चला आया । पहले शिविर में ही मेहनत से काम करता गया और सुखद परिणाम देखकर धर्म के प्रति आकर्षित हुआ । अन्य दो तीन शिविरों में सम्मिलित हो कर विपुल धर्मलाभ प्राप्त कर धन्य हुआ । अब वह नशे पते के व्यसन से पूरी तरह मुक्त हो चुका था। नशा छूटा तो अन्य सुधार हुए । मां बाप याद आने लगे तो घर लौट गया । अत्यंत सुधरी हुई अवस्था में लौटा तो माता पिता को जैसे बहुत बड़ी अमूल्य निधि मिल गयी । बड़े प्रसन्न हुए और इस बदलाव का कारण विपश्यना साधना जानकर उसके प्रति अत्यंत आकर्षित हुए। धीरे धीरे पुत्र के सुधरे हुए चाल ढाल, बर्ताव, व्यवहार को देखकर उनका वात्सल्य प्रेम श्रद्धा में परिवर्तित होने लगा । अपने हर प्रकार के सुधार के प्रयत्न में असफल रिचार्ड को मात्र साधना के अभ्यास से क्रिस में आए इस अद्भुत परिवर्तन की बात बड़ी अजीब सी लगी । परंतु प्रत्यक्ष प्रमाण को झुठलाया नहीं जा सकता था । अतः सारे परिवार के साथ किसी शिविर में सम्मिलित होने की मन में तीव्र उत्कंठा जाग उठी। विशेषकर अपनी उन दो युवा पुत्रियों को उनकी पतनोन्मुख अवस्था से बाहर निकालने की आतुरता तीव्र हो उठी। परंतु अनेक कारणों से सबके साथ भारत आ नहीं सकता था । अतः आस्ट्रेलिया में ही शिविर लगवाने की बात सेाचने लगा । अंततः जब सुना कि गुरूजी ने उसके देश और शहर में शिविर लगाने की स्वीकृति दे दी है तब अत्यंत प्रसन्न हो उठा । बढ़ी अधीरता के साथ भावी शिविर की तिथियां गिनने लगा ।
                धीरे धीरे शिविर का समय समीप आया । पुत्र एव दोंनों पुत्रियों सहित शिविर में सम्मिलित होने के लिए कृत संकल्प था । परंतु यकायक सिर पर बिजली टूट पड़ी । जिस दिन शाम को शिविर लगने वाला था उसकी पिछली रात उसकी छोटी वयस्क पुत्री व्यसन से व्याकुल किसी तीव्र नशीले पदार्थ की खोज में घर से भाग निकली और कहीं नाविकों के एक समूह में उसे अपनी इच्छानुसार मादक पदार्थ मिल गया । वहां इसने उस नशीले पदार्थ का क्षमता से अधिक मात्रा में सेवन कर लिया और परिणामतः भोर होने से पहले अपने प्राण गंवा बैठी । सुबह उस लड़की का शव घर लाया गया । सारा परिवार शोक के अथाह सागर में डूब गया । बाप के शोक की कोई सीमा नहीं थीं । जो व्यक्ति समाज के व्यसनग्रस्त युवक युवतियों को व्यासनमुक्त करने के लिए इतना बड़ा सक्रिय काम कर रहा है उसकी अपनी लाडली बेटी भरी जवानी में व्यसन के दुष्परिणाम से उसके सामने मृत पड़ी हैं और वह असहाय है ।
             एक और दुविधा थी अपनी प्यारी पुत्री की लाश दो तीन दिन तक घर में रखनी होगी सभी सगे संबंधी व परिचित शोक संवेदना प्रदर्शनार्थ आते रहेंगें । इस औपचारिकता के साथ ही उसे दफनाया जाएगा । ऐसी सामाजिक परपंरा है।दूसरी ओर आज शाम को ही साधना शिविर आरंभ होने वाला है जिसकी इतने दिनों से आज लगाए बैठा था और जिसके अभाव में अपनी एक संतान खो बैठा था । उस धर्म साधना का अवसर कैसे खोए  एक ओर मन में प्रबल धर्म संवेग है शिविर में सम्मिलित होना ही चाहिए । पता नहीं ऐसा अवसर फिर कब आए । आए भी या नहीं । दूसरी ओर शिविर में जाने से जग हंसाई होगी । लोग कहेंगें कि बेटी की लाश पड़ी है और बाप साधना करने आ गया । विचित्र दुरभिसंधि थी । क्या करे क्या न करे । यह तुमुल अंतरद्वंद लिए हुए वह अपने पुत्र और पुत्री के साथ साधना स्थल पर गुरू जी से मिलने चला आया । सारी बात सुनकर थोड़ी देर तक मैत्री देने के बाद गुरुजी ने उसे समझाया कि मृतक को अब जीवित नहीं किया जा सकता परंतु जो बेटी जीवित है और गलत रास्ते पर है उसकी सुरक्षा करना सामाजिक प्रतिष्ठा व लोकोपचार से कहीं अधिक आवश्यक बात है । बेटी बाप के बिना अकेली शिविर में बैठने के लिए तैयार नहीं थी । मुरुजी के साथ काफी देर तक सभी पहलुओं पर चर्चा करने के बाद अंततः वह अपनी बड़ी पुत्री के साथ शिविर में सम्मिलित होने का निर्णय करने वहीं रुक गया और अन्य औपचारिकताओं के लिए साधना में पहले से पुष्ट हुए पुत्र क्रिस को घर भेज दिया । क्रिस ने अपने पिता को आश्वासन दिया कि अपनी माता के साथ मिलकर वह सारी औपचिारिक बातें पूरी कर लेगा । यह दोनों निश्चिंत होकर शिविर का लाभ लें । जहां एक ओर पिता रिचर्ड इतने बड़े अंतरद्वंद से पीड़ित था वहां दूसरी ओर बेटी एंड्रिया छोटी बहन की अकाल मृत्यु के संताप से तो विचलित थी । एक और और कठिनाई भी साथ लेकर आयी थी । इसी की भांति नशे पते का गुलाम उसका प्रेमी पिछले दिनों मादक द्रव्यों के अवैध व्यवसाय में पकड़ा गया था । उसका मुकदमा चल रहा था । दो चार दिन में न्यायालय का फैसला उसके विरूद्ध आने वाला था । उसे कम से कम 6 माह का कठोर कारावास दंड मिलने वाला था । ऐसे समय वह अपने प्रेमी के पास रहना चाहती थी । और इसीलिए बार बार शिविर से भाग जाने के लिए आतुर हो उठती थी । दोनों को ही पूरे शिविर की अवधिपर्यंत संभाले रखना अपने आप में एक बड़ी चुनौती थी जिसका मुकाबला गुरुजी को करना था । उन्हें समझाने बुझाने के लिए उन्हें हर समय तैयार रहना पड़ता और समय देना पड़ता था । सांत्वना के दो शब्द इन दुखियारों के उत्साह बढ़ाते और पुनः काम करने की प्रेरणा देते । इस प्रकार वे फिर साधनारत हो जाते । शिविर के दूसरे दिन रिचार्ड के मन में तूफान का एक झोंका आया। वह आकर कहने लगा कि आज बेटी की लाश को दफनाने का दिन है । हमारी पंरपरा के अनुसार लाश दफनाते समय जब हम कब्र पर अपने हाथ से मिट्टी डालकर गुड बाई नहीं कह लेते, तब तक उस व्यक्ति से संपर्क बना ही रहता है । अतः आप इतनी छूट दें कि मैं अंतिम संस्कार में सम्मिलित होकर थोड़ी देर में वापस आ जाऊं । गुरुजी जानते थे कि शिविर स्थल से बार जाते ही बहुत बड़ी बाधा उपस्थित होगी । अतः न जाना ही उचित है । बड़ी कठिनाई से उसे भावावेश को दूर करते हुए समझा पाए कि सत्य धर्म के अभ्यास के मुकाबले और सभी कर्मकांड थोथे हैं । यहां रहकर मन शुद्ध करके निर्मल चित्त से अपनी मंगल मैत्री भेज सकेगें तो तुम्हारा और मृतक का दोनों का कल्याण होगा । बात समझ में आ गयी और अंततः दोनों शिविर पूरा करके ही घर लौटे । बीच बीच में नित्यप्रति वह कुछ देर गुरुजी से चर्चा करते । उस समय उनके मन में उठे द्वंद थोड़ी देर धर्म चर्चा से शांत हो जाते । गुरुजी कभी किसी गौतमी की कथा सुनाते तो किसी पटाचारा की । भिन्न भिन्न प्रकार से प्रेरणा गाते जिसके कारण वे फिर काम में लग लाजे । सातवें आठवें दिन जाकर जब साधना की गहराई में पहुचकर मन के विकारों को ठीक से देखना आ गया तब इन द्वंदों से छुटकारा मिला और अंततः प्रसन्नचित्त होकर घर लौटे । अधि‍क जानकारी के लिए देखें साइट www.dhamma.org 

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