Thursday, August 11, 2016

भारत को पुन: अखण्ड किस प्रकार किया जा सकता है ?

  संघ के कार्यकर्ताओं द्वारा प्रत्येक वर्ष 14 अगस्त को अखण्ड भारत संकल्प दिवस मनाया जाता है । परन्तु उनके द्वारा यह नहीं बताया जाता कि यह किस प्रकार किया जाएगा एक कार्यकर्ता को क्या करना चाहिए कि भारत पुन: अखण्ड किया जा सकता है । इसका एक तरीका यह भी हो सकता है कि संघ का एक कार्यकर्ता प्रधानमंत्री बन गया है तो वह भारत की सैन्यशक्त‍ि के बल पर अन्य सभी देशों को अपने में मिला कर भारत को पुन: अखण्ड बनाए परन्तु वर्तमान में जब अन्य देशों के पास पर्याप्त मात्रा में परमाणु शक्त‍ि है तो सैन्य शक्त‍ि के आधार पर यह सपना पूरा हो पाना संभव नहीं दीखता । इस संबंध में हमें यह भी विचार करना चाहिए कि पुराने समय में जब भारतीय संस्कति‍ पूरे विश्व में फैली थी तब भी क्या वह ताकत के आधार पर पूरे विश्व में फैली थी । पूर्व काल में भी भारत ने अपनी सैन्य शक्त‍ि के आधार पर अन्य देशों पर कब्जा नहीं किया । पुराने समय में भी भारत से धर्मदूत अन्य देशों में जाते थे जो कुछ लोग ही अपने प्रभाव से दूसरे समस्त् देश के लोगों को अपना बना कर आ जाते थे । सम्राट अशोक ने अपने पुत्र व पुत्री को अन्य देशों में भेजा और कुछ ही लोगों दूसरे पूरे देश को अपने आध्यात्म की शक्त‍ि के बल पर अपना बना लिया । सैन्य शक्ति‍ के आधार पर यदि‍ हम किसी अन्य देश पर अपना अधि‍कार कर भी लेते हैं तो भी दूसरे देश के लोग यदि हमारे अधि‍कार को मन से स्वीकार नहीं करते हैं तो भी वहां भारत जैसी परिस्थ‍िति पैदा होगी अर्थात जैसे भारत की उस समय थी जब भारत पर अंग्रेजों का कब्जा था ।

               अ‍त: उपरोक्त तथ्यों के आधार पर निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि केवल शक्त‍ि के बल पर भारत को पुन: अखण्ड नहीं बनाया जा सकता है । आध्यात्म की शक्त‍ि के बल पर ही भारत को पुन: अखण्ड बनाया जा सकता है । भारत के धर्म योद्धाओं ने समय समय आध्यात्म के बल पर ही पूरे विश्व पर भारत का डंका गाढा है ।
                पुराने भारत की आध्यात्म की विद्या आज फिर एक बार भारत में लौट कर आयी है । और भारत के साथ साथ दुनिया के अन्य देशों के लोगों को भी अपनी ओर खींच रही है । भारत की यह विद्या भगवान के नाम पर अन्य लोगों से लड़ना नहीं सिखाती वरन् सारी मानवता की समस्याओं का हल बताती है जिससे कोई भी व्यक्ति सहज ही इसे सीखकर इससे लाभ पाता है । भारत की संस्कृति किस प्रकार पूरे विश्व में फैलती है और लोगों को प्रभावित करती है इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है जो एक सच्ची घटना है । एक मुस्लिम युवती जो जोडों के दर्द से पीड़ित है और प्रतिमाह लगभग 1 हजार रुपए महीना की दवाई खा रही है को स्वामी रामदेव के बताए योग से लाभ होता है । उसका पति व मौलवी उस औरत को यह कहकर करने से रोकते हैं कि इससे कुफ्र के रास्तें पर पड़ने का भय है । पर वह औरत कहती है कि मैं इसे किसी अन्य भगवान की पूजा नहीं कर रही हूं पर इससे मुझे कई तरह के षारीरिक पीड़ाओं में लाभ होता है इसीलिए करती हूं । कुछ दिनों में उस औरत का योग के प्रति सम्मान बढ़ता जाता है भारतीय संस्कृति के प्रति सम्मान बढ़ जाता है । और थोड़े दिनों बाद यदि कोई उस औरत से यह कहे कि इस्लाम के अतिरिक्त सारी दुनिया काफिर है और उसके विरुद्ध जिहाद करना है तो वह औरत कहेगी कि हिन्दू लोग तो अच्छे हैं हमें बिना किसी लालच के योग प्राणायाम जैसी विद्या सिखाते हैं । मौलवियों की बात गलत है । इसी तरह इस्लाम की दुनिया में एक ऐसी व्यक्ति हमें मिल जाता है जो हमारा शत्रु नहीं है बल्कि मित्र है ।
                इसी प्रकार भारत का एक संत कहता है कि हमें भगवान से कुछ लेना देना नहीं है किसी भी भगवान को मानों । फिर कहता है यह तो मानते हो कि संसार में दुख है । तो जो सच्चाई है उसे हर व्यक्ति को मानने के लिए विवश होता है । अब वह वह दूसरी सच्चाई कहता है कि दुख का कारण है वह है तृष्णा और उसे दूर करने का उपाय है आर्य अष्टांगिक मार्ग । और कहता है मेरे बताए मार्ग पर जरा थोड़ा चलकर तो देखो कि क्या इस मार्ग पर चलने से तुम्हारे दुख में थोड़ी कमी आयी है अथवा नहीं । तो जो लोग इस मार्ग पर थोड़ा भी चलकर देखते हैं तो खुद ही अपनी अनुभूतियों से समझने लगते हैं कि उनके दुख कम हो रहे हैं । और मार्ग पर चलते चलते यह भी स्पष्ट होने लगता है कैसे इस मार्ग पर चलने से सारे दुख सारी समस्यांए दूर हो जाएंगी और परम सत्य का साक्षात्कार हो जाएगा । और यही महापुरुष् कहता है कि मैं जो कहता हूँ उसे केवल इसीलिए मत मानों कि मैने कहा है पर जो रास्ता मैं बताता हूँ उस पर चलो उस पर चलकर तुम्हें जितनी खुद को लगने लगे कि हाँ यह तो सच्चाई है उसे मानों । जानो फिर मानो । किसी भी सत्यशोधक व्यक्ति को यह बात स्वीकार करनी पड़ती है । जब ध्यान को करने से उसे लाभ होता है तो वह पहल उस सिखाने वाले व्यक्ति में प्रति श्रद्धावान होता है । फिर उस देश के प्रति श्रद्धावान होता है जहां का वह सिखाने वाला रहने वाला हो । उसी ध्यान की विद्या के बल पर भारतीय संस्कृति पूरे विश्व में फैली । और लोग भारत के ज्ञान से प्रभावित होकर खुद ही स्वयं को भारतीय संस्कृति जोड़कर देखने लगे । ताकत के बल पर हम किसी अन्य देश पर सदैव के लिए कब्जा नहीं कर सकते ।
               यही ध्यान की विद्या आज पूरे विश्व में मुस्लिम और ईसाई दोनों देशों में फैल रही है और उन देशों के मुस्लिम और ईसाइयों के मन में भारत भारत की संस्कृति और भारत के लोगों के प्रति श्रद्धा पैदा कर रही है । यह विद्या कैसे लोगों को अपना बनाती है इसका एक उदाहरण - बेनजीर भुट्टो जो पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री थी, को कई महीनों से बिना नींद की गोली लिए नींद नहीं आयी थी । उनसे किसी ने कहा कि यदि आप इस ध्यान को सीख लोगी तो आप को इस बीमारी में लाभ होगा । उन्होनें इसे सीखा और पहले ही दिन बिना गोली लिए सोई । ध्यान के प्रति श्रद्धावान हुई ।
                इसी प्रकार अपनी समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए लाखों विदेशीयों ने यह विद्या भारत में रहकर सीखी । फिर लौटकर अपने देष को गए तो देखा कि मेरे देष में कितने ही लोग उन्हीं समस्याओं से ग्रस्त हैं जिनसे मैं कभी स्वयं ग्रस्त था । और ध्यान की वह विद्या विपश्यना सीख कर मेरी बहुत सी समस्यांए दूर हो गयी हैं । तो अपने प्रयासों से अपने अपने देषों में इसके केन्द्र खोल लिए ताकि उनके देशवासी भी इस विद्या से लाभान्वित हो सकें । इसी कारण पूरे विष्व के कई मुस्लिम व ईसाई देशों में आज इस विद्या के केन्द्र खुल चुके है । लोग अपने दुखों से इस विद्या को सीखने के पश्चात दूर हो रहे है। और भारतीय संस्कृति के प्रति स्वतः ही बिना किसी जोर जबरदस्ती के निष्ठावान हो रहे है । केवल यही एक तरीका है जिससे अन्य देश जो हमारे देश से अलग हो गए पुनः अपने में मिलाया जा सके । पहले वहां रहने वाले नागरिकों के मन से भारत के प्रति शत्रुता के भाव को खत्म करना होगा । फिर उन्हें अपनी पुरातन संस्कृति के प्रति निष्ठावान बनाना होगा । उसके बाद उन्हें स्वयं ही यह आभास होगा कि मजहब के आधार पर जो बंटवारा हुआ वो गलत था, उसे दूर करना चाहिए । इसीलिए अखण्ड भारत का सपना देखने वालों को इस विद्या को एक बार आजमा कर देखना चाहिए और जांचना चाहिए ।
               नीचे उन केन्द्रों की सूची है जो पूरे विश्व में खुल चुके हैं।
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18/08/2014