Saturday, July 4, 2015

निदेशक, नेशनल वोकेशनल सर्विस सेंटर, पुणे से प्राप्त पत्र - फादर एम. ए. जेम्स


   विपश्यना से मेरा परिचय फादर टोनी डि मेलो ने करवाया और उसके बाद १९७६ में मैने इसको अनुभव द्वारा जाना। मैं इसे पाकर धन्य हुआ। सुख और शांति मेरे जीवन में व्याप्त हो गये। मैंने स्वयं को अध‍िक अच्छे तरीके से समझा। मेरी एकाग्रता और जागरूकता में उन्नति हुर्इ। यद्यपि मैं नियमित रूप से विपश्यना का अभ्यास करने का दावा नहीं कर सकता, परंतु मैंने अक्सर अपना समय विपश्यना के अभ्यास में लगाया है। अब मैं प्रतिदिन कुछ समय विपश्यना साधना करता हूं।
  इस अनुभव ने मुझे विपश्यना-एकांतवास के आयोजन में सहायता प्रदान की। यह एकांतवास (Transformation Towards Wholesomeness) (T.T.W.) (समग्रता के लिए परिवर्तन) कोर्स के स‍हभा‍गियों के लिए है। साल-दर-साल उन्होंने विपश्यना किया है। स्वभाव बदलने के लिए यह सचमुच एक प्रभावशाली चि‍कित्सा है। यहां छ: महीने के प्रशि‍क्षण के बाद वे विपश्यना को अचूक औषधि मानते है। उनमें से ज्यादातर विपश्यना के अभ्यास को निरंतर बनाये रख्नने के संकल्प के साथ वापस लौटते है।
    संसार को दु:खमुक्त करने के लिए गोयन्काजी ने गौतम बुद्ध के संदेश को फैलाया। मैं उनके प्रति श्रद्धा-विनीत और हृदय से उनका प्रशंसक हूं। इस आकुल-व्याकुलख, युद्धग्रस्त संसार में सुख-शांति लाने के लिए इस मुक्ति‍दायिनी ज्ञान-गंगा का खूब प्रचार-प्रसार हो। चारों ओर सुख-शां‍ति का साम्राज्य हो।
  हमारे सहभागियों द्वारा विपश्यना शि‍विर में भाग लेने के उपरांत हम आपस में चर्चा करते हैं। इसके द्वारा हम सहभागियों को विपश्यना से पूर्ण लाभ उठाने में सहायता करते हैं। इन चर्चाओं के दौरान उभरे नतीजे यहां प्रस्तुत किये जा रहे है  :
नेशनल वोकेशनल सर्विस सेंटर की संयुक्त रिपोर्ट-
. अनुभव
(‍क)  सभी ने बताया कि यह शि‍विर उनके लिए शांति प्रदान करने वाला अनुभव था। हम में से हर ए‍क को स्वयं से संबंधित सच्चाई को जानने-समझने में इस शि‍विर ने मदद की। हमने ईश्वर के साम्राज्य को स्वयं के भीतर ही अनुभव किया। वर्तमान पल में यहा और अभी समतापूर्वक हम किस प्रकार जीवन जी सकते हैं, इसमें य‍ह सहायक बनी। विपश्यना में यह एक नयी बात थी।
. भय और व्याकुलता
     शुरू-शुरू में हम सभी को बहुत डर और बेचैनी हुई कि लंबे समय की बैठक, मौन और भोजन आदि से आगे न जाने क्या होगा! धीरे-धीरे दिन गुजरने के साथ हमने विपश्यना की लय-ताल में प्रवेश किया। हमारे सारे भय भाग गये। हमने स्वयं के भीतर प्रशांति और नि:स्तव्धता को महसूस किया।
. लाभ
१.ध्यान केंद्रित करने में लाभ हुआ।
२.सांस पर ध्यान करने से हमने व‍र्तमान में जीना सीखा। नित नयी संवेदनाओं के साथ किस भांति सांस बदलता रहता है, इसे जाना।
३.हमने अनुभव किया कि विपश्यना विधि हमारे मानस की गहराई में दबे हुए विकारों से हमें छुटकारा दिलाने में सहायक हो रही है। ये विकार समय-समय पर विभि‍न्न संवेदनाओं के रूप में प्रकट होते हैं। इनसे छुटकारा मिलने पर अंतर में अलौकिकता अनुभव हेाती है।
४.स्थि‍र आसान और आर्यमौन रखने से स्वानुशासन विकसित होता है जो धर्ममय जीवन में प्रगति हेतु बहुत आवश्यक है।
५.संपूर्ण शि‍विर के दौरान आर्य-मौन बनाये रखने पर बल दिया गया जो कि अपने अंदर बोधि जगाने के लिए बहुत उपयोगी रहा।
६.अनित्यता का नियम- सब कुछ बदल जायगा- इस सत्य का अनुभव शारीरिक संवेदनाओं के प्रति जागरूकता बनाये रखने से हुआ। बदलती घटनाओं के प्रति मानस में समता विकसित करनें में भी यह सहायक रहा।
७.विपश्यना के अनुभव ने हमें प्रेरित किया- स्वयं को बेहतर ढंग से जानने के लिए, संतुलित जीवन जीने के लिए और इस तरह जीवन को समग्र से समझने के लिए, जिससे हम जीवनपथ पर डगमगायें नहीं।
८.हमारे मन में सबके प्रति दया, प्रेम और कल्याण कामना जगाने में इस अनुभव ने मदद की।
९.सबने यह-विचार व्यक्त किया कि विपश्यना साधना बौद्धि‍क जंजाल न होकर अनुभवजन्य ज्ञान पर आधारित है।
१०.धर्म-प्रवचन सभी को बहुत ही स्पष्ट और व्यावहारिक लगे।
(ख)
सचमुच टी.टी.डव्लू. कोर्स में विपश्यना बहुत सहायक रही। यह कोर्स के मुख्य लक्ष्य ‘समग्रता’ को प्राप्त करने में बहुत सहायक रही है। यह हमें संपूर्ण दु:खों से मु‍क्त‍ि दिलाने हेतु परम शुद्ध मार्ग है। चाहे हम सभी प्रशि‍क्षक हैं जिनकी स्वयं की धारणाएं, आस्थाएं, तौर-तरीके और दृष्टि‍कोण हैं परंतु फिर भी य‍ह हमें विचलित न होने देकर समतावान बने रहने में सहायता करती है। इसी प्रकार नव-दी‍क्षि‍तों के बारे में कोई गलत धारणा बनाना भी ठीक नहीं। अत: इसकी मदद से हम संतुलित रह कर, जांच-परख कर सही निर्णय ले सकते हैं।
(ग)
हां, आरंभ में हम नव-दी‍क्षि‍तों को विपश्यना के पहले कदमों से परिचित कराते हैं जैसे सांस एवं मन पर ध्यान कें‍द्रित करना, स्थ‍िर बैठना, मौन रहना। इस प्रकार उन्हें दैनिक जीवन में विपश्यना के लाभ दर्शाते हैं।                 

एक कैथोलिक पादरी के विपश्यना-संबंधी उद्गार -फादर पीटर लॅाड्रर्स


  मैं इगतपुरी के विपश्यना विश्व वि़द्यापीठ में श्री सत्यनारायण गोयन्का द्वारा संचालित विपश्यना के दस-दिवसीय शि‍विर में फरवरी १९८६ में सम्म‍िलित हुआ था। इगतपुरी मुंबई से रेल द्वारा लगभग तीन घंटे की दूरी पर है।
 मेरे साथ चार कैथोलिक पादरियों] दो बंधुओं (brothers) तथा अटठा्ईस भगिनियों (sisters) का एक समूह था। मेरे स्टाफ का एक पादरी और दो सिस्टर्स भी मेरे साथ थीं। मैं प्रशि‍क्षकों(चर्च कार्मिक, जो कि भावी व्रदर्स एवं सिस्टर्स और पादरियों के प्रशि‍क्षण प्रभारी होते हैं) के लिए छमाही पाठ्यक्रम का आयोजन एवं संचालन करता हूं। एक आध्या‍त्म‍िक इकाई के लिए यह आवश्यक है कि उसे विश्व की अन्य प्रचलित आध्यात्म‍िकताओं का अनुभाव प्राप्त हो। हम सभी यह अनुभव प्राप्त कर र‍हे थे।
      मैं एक धार्मिक पादरी हूं। मैंने रोम से मनोविज्ञान में उपाधि और शि‍कागो के लोयोला विश्ववि़द्यालय में पी.एच.डी. किया है। मेरे शोध का विषय था- (The Implicatons of  the T.M.Programme for Counselling Psychology)। लोयोला में तुलनात्मक रहस्यवाद के एक पाठ्यक्रम में मुझे कक्षा में भावातीत ध्यान की प्रस्तुति के लिए कहा गया था। मनो‍चि‍कित्सा, तुलनात्मक रहस्यवाद, भावातीत ध्यान और मेरे धार्मिक निजी जीवन की मेरी पृष्ठभूमि, विपश्यना अंतर्राष्ट्रीय अकादमी में शि‍विर के दौरान महत्वपूर्ण पूंजी सिद्ध हुई। मुझे लगा कि मैं उन चीजों का स्पर्श कर रहा हूं जिनकी मैं वर्षो से प्रतीक्षा कर रहा था। मैं पूर्ण लौटने पर अपने धार्मिक समूह, जिनका मैं निदेशक था, के साथ विपश्यना करने लगा।
    इगतपुरी में मैं लॅारी रॅास से मिला जिनकी विपश्यना के प्रति लगन ने मुझे बहुत प्रभावित किया। ध्यानकक्ष में उनका घंटो एक ही आसन पर बैठे रहना मुझे प्रभावित कर गया। मैं उतनी देर नहीं बैठ पाता था। उन्होने मुझे बताया कि यह उनका १३ वां शि‍विर है।
      जो लोग जानते हैं कि मैं एक पादरी हूं, प्राय: आश्चर्य प्रकट करते हैं कि एक कैथोलिक पादरी का बौद्ध केंद्र में क्या काम? ड्यूक विश्वविद्यालय के रोजर कॅार्लेस बताते हैं कि सामान्य कैथोलिक समूह-प्रार्थी (mass-goer) की अपेक्षा डी.टी. सुजुकी (जेन बुद्धि‍स्ट) का साथ उन्हें अधि‍क सुसंगत लगता था। मैं मर्टन नहीं हूं, परंतु मुझे भी इगतपुरी में वैसा ही लगा और प्राय: अपने धर्मक्षेत्र में भी वैसा ही अनुभव करता था। आध्यात्मि‍कता के लिए मैं जीवनभर लालायित रहा। मैंने पीटर की खोल (Bark of Peter) से बाहर-बाहर के पानी में उस‍की तलाश करने का साहस किया है।
    मेरी कैथोलिक संबद्धता के साथ यह कैसे ठीक बैठता है? मैं सोचता हूं, मेरी कैथोलिक परंपरा की रहस्यात्मक आध्यात्म‍िकता की लक्ष्य-प्राप्त‍ि का एक मार्ग विपश्यना है।
 मेरी कैथोलिक परंपरा का एक ईश्वरपरक पक्ष भी है। यह वही पक्ष है जो प्राय: परंपरागत प्रश्नोत्तरी, चर्च-गमन, पारिवारिक भरण-पोषण, उपदेश आदि से संप्रे‍षि‍त होता है। विपश्यना तकनीक का सिद्धांत मेरे कैथोलिक सांसारिक परिदृश्य में ठीक नहीं बैठता, परंतु मैं इसे अति महत्वपूर्ण नहीं मानता । मेरा उसे महत्वपूर्ण नहीं मानने का कारण यह है कि मैं क्रिस्तीन (ईसाई) धर्म विज्ञान को अनुभवातीत अनुभव की चर्चा और व्याख्या का एक तरीका मानता हूं। मेरा यह मानना है कि किसी चीज की व्याख्या करने से अच्छा उसका अनुभव करना हैं। अनुभव में मै हिंदू, मुस्लि‍म और बौद्ध परंपराओं से अपनी क्रिस्तीन (ईसाई) परंपरा की रहस्यवादिता को धर्मविज्ञानियों और समूह-प्रार्थियों की अपेक्षा अधिक निकट मानता हूं।
 मैं अनुभव करता हूं कि मेरी क्रिस्तीन पंरपरा में “ईश्वरपरक आध्यात्मि‍कता” रहस्यवादिता की अपेक्षा अधि‍क प्रभावी थी। मुझे लगता है कि गोयन्काजी द्वारा विहित आध्यात्मि‍कता में रहस्यवदिता ही सब कुछ है। वास्तव में यह सत्य की ओर बड़ी गर्मजोशी से पहॅुचती है और उससे पहले कहीं रूकती भी नहीं।
  क्या क्रिस्तीन परंपरा में वैसी ही गर्मजोशी का प्रभाव नहीं है? मेरा विश्वास है कि अवश्य है, परंतु विपश्यना की तरह सरल और स्पष्ट विधि का अभाव-सा लगता है। जो कुछ विधि‍यां थीं, वे मठों के साथ समाप्त हो गयी।
    अपनी आध्यात्म‍िक यात्रा में मैं धर्मग्रंथों व स्कूलों में बताये गये ईश्वर की अपेक्षा अपनी मानवता के अकथनीय ईश्वर की खोज में हूं।
  यद्यपि मैं मसीहा होना नहीं चाहता, मुझे प्राय: दु:ख होता है कि मैं अपने क्रिस्तीन साथि‍यों को आम आध्यात्म‍िक वातावरण से परे जाने के लिए प्रेरित नहीं कर पाता हूं।
  अपने धार्मिक समूहों में, अपनी पद-प्रतिष्ठा के अनुरूप या उनसे बाहर एक अलग शंखनाद सुनने और उसके अनुरूप चलने के प्रयास हेतु, मेरे और समस्त मानव जाति में शामिल होने का आप सबको आमंत्रण देता हूं।
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 सभी बुद्धों की मात्र यही तीन शि‍क्षाएं है :-
(१) शील- सभी बुरे कामों से बचो ।
(२) समाधि- संयामित मन से सभी शुभ कार्यो को करो।
(३) प्रज्ञा- अंर्तदर्शन द्वारा मन को जड़ों तक विशुद्ध करो।
संसार में सभी धर्मो के यही सर्व-सामान्य तथ्य हैं। इनमें से कोई भी इन तथ्यों को नकार नहीं सकता। ये तीनों जब मिलते हैं तभी शुद्ध ‘धर्म’ बनता है। ये ही समस्त सृष्ट‍ि में व्याप्त हैं। ये किसी एक संगठित धर्म तक सीमित नहीं है। इनका अभ्यास कोई भी बिना किसी संदेह, कठिनाई अथवा हिचक के कर सकता है और समान परिमाण- शांति तथा समरसता- को प्राप्त कर सकता है।
-    सयाजी स० ना० गोयन्का
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’स्वयं को जानो’ : विपश्यना का मेरा अनुभव - सिस्टर विनया, ईसाई साध्वी तथा सहायक आचायी, विपश्यना


   मैंने अपना पहला शि‍विर बंगलौर के फादर एंथनी डि मेलो के कुछ व्याख्यानों से प्रेरित होकर सन १९७८ में किया था। वे भारत के पहले ईसाई पादरियों में से थे जिन्होंने विपश्यना शि‍विर किया था। धम्मगिरि में दस-दिवसीय शि‍विर ने मेरे जीवन को बदल दिया और इसे एक नयी दिशा प्रदान की ।
  भारतीय संस्कृति से ईसाई संस्कृति का मिश्रित अध्ययन करते समय मेरे अंतर में कुछ संघर्ष की स्थ‍िति पैदा हुई। मुझे कुछ कार्यो से, जिन पर मेरा विश्वास था कि वे समाज के लिए अच्छे है, अंदर से असंतोष हो रहा था। विपश्यना द्वारा जागृत अंतर्दृष्ट‍ि ने मुझे इस संघर्ष की जड़ तक पहॅुचाया और मेरे इरादों को दृढ़ किया। फलत: मैं अधि‍क सामंजस्य के साथ काम कर पायी। एक प्रकार की अपूर्व शांति मिली। विपश्यना की सहायता से वे दीवारें टूट गयीं जो मुझे अपने अंतरतम को जानने में बाधक बनी हुई थी।
    ‘अपने आपको जानो’ यह कहावत ईसाइयों में बहुत प्रसिद्ध है। विपश्यना के बारे में मेरा अनुभव है कि यही एक सही वैज्ञानिक और कारगर विधि है जिसके द्वारा कोई भी अपने आपको सही तरीके से जान सकता है और खुशि‍यों से भरा, लाभकारी जीवन जी सकता है।
   विपश्यना नैतिकता को बढ़ावा देने, मन का मालिक बनने और मन के शुद्धि‍करण में सहायक है। यह मनुष्य के लिए दूसरों के प्रति प्यार और करूणा को बढ़ावा देने में सहायक है। मेरे विचार से विपश्यना ईसाई धर्मग्रंथो का ही क्रियात्मक अभ्यास है- कैसे अच्छी जिंदगी जिये, अपने लिए और दूसरों के लिए भी ।
  मुझे लगता है कि विपश्यना का सार्वजनीन पक्ष बड़ा आकर्षक है। आखि‍रकार विपश्यना सीधे प्रकृति के नियमों का अनुभव कराती है। यही नियम संपूर्ण मानव जाति पर लागू होते हैं, सिवाय कुछ विशेष मान्यताओं के जिन पर चलना मनुष्य स्वयं चुनता है।
  मैं विपश्यना के संपर्क में आने के बाद कुछ समय तक यूरोप की एक मोनेस्ट्री में रही। तुलनात्मक रूप से वहां का रहन-सहन उच्च प्रकार का और  सुविधाएं बड़ी आकर्षक थी, लेकिन मुझे एक अजीब-सा खालीपन लगता था। मैं भारत लौटी, विपश्यना के कुछ और शि‍विर किये और इस विधि में अपने आपको प्रतिष्ठ‍ित किया। इससे मुझे एक प्रकार की शांति व शक्त‍ि प्राप्त हुई जिससे मेरा आंतरिक खालीपन दूर हो गया- ऐसा खालीपन जो हममें से बहुतों को समय-समय पर अनुभव होता रहता है।
 ब्राजील की एक साध्वी और मेरी परिचित विपश्यी सा‍धि‍का ने कुछ ही समय पहले मुझे लिखा कि वह जल्दी ही भारत आ रही है और सबसे पहले विपश्यना का दूसरा शि‍विर लेना चाहती है। अन्य पादरी व साध्व‍ियां जो शि‍विर कर चुके हैं, का कहना है कि विपश्यना से उनका जीवन अधि‍क समृद्ध हो गया है। विपश्यना का एक ऐसा सार्वजनीन आकर्षण है जो सभी धर्मो, राष्ट्रों और संस्कृतियों के आर-पार चला जाता है। नि: संदेह विपश्यना सुखी जीवन-यापन की कला है, एक अच्छा मानव बनने की कला है जो अपने लिए भी लाभकारी है और दूसरों के लिए भी।
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