Saturday, November 2, 2019

बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर का स्वप्न पूरा होगा ही - व‍िपश्यनाचार्य श्री सत्यनारायण गोयन्का द्वारा द‍िया गया प्रवचन

             शिवाजी पार्क 2005
          परम आदरणीय भिक्षु संघ,  भारत रत्न बाबा साहब के श्रृद्धालु अनुयायियों आज के इस महत्वपूर्ण अवसर पर बाबा साहब को याद करना स्वाभाविक है । सदियों में कोई एक ऐसा युग पुरूष पैदा होता है जो कोई बहुत बड़ा लोक कल्याण करता है । बाबा साहब ऐसे ही एक युगपुरूष हुए । जिस समय समाज का अधःपतन हो जाता है सामाजिक व्यवस्था दूषित हो जाती है, धर्म का नाश होता है, धर्म की हानि होती  है ग्लानि होती है, भगवान बुद्ध के समय भी ऐसा ही हुआ, एक ओर लोग स्वर्ग में जाने की आकाक्षां के लिए मूक पशुओं की बलि देते थे यही अपने आप बहुत बड़े अधर्म की बात थी और दूसरी समाज में ऐसी गलत व्यवस्था  चल पड़ी थी कि एक आदमी को केवल  जन्म के कारण ऊंचा माना जाए और दूसरा नीचा माना जाए । एक आदमी कितना भी पतित क्यों न हो कितना भी दुराचारी क्यों न हो अमुक मां के पेट से जन्मा हो तो पूज्य है दूसरा कितना भी सज्जन क्यों न हो कितना भी धर्माचारी क्यों न हो अमुक मां के पेट से जन्मा है तो श्रेष्ठ नहीं है ।   यह मान्यता लोक में फैल रही थी कि विप्र है न फिर कितना भी पतित क्यो न हो फिर पर श्रेष्ठ है । क्षूद्र है तो कितना भी जितेन्द्रिय क्यो न हो फिर भी श्रेष्ठ नहीं है । धर्म का अवमूल्यन हो गया था । मां की कोख महत्वपूर्ण हो गयी बहुत बुरी व्यवस्था थी । भगवान ने इस व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाई । न जच्चा वसला होति न जच्चा होति बाहमिनो । कम्मना वसला होति कम्मना होति बाहमिनो । जन्म से न कोई बाहृमण होता है न जन्म से कोई शूद्र होता है । कर्म से ब्राहृमण होता है और कर्म से ही शूद्र ।  यो  धर्म का उद्धार किया । शुद्ध धर्म को पुर्नस्थापित किया । एक और बुरी बात उन दिनों चलती थी देश में गुलामी प्रथा थी राजाओं, धनवानो, पुराहितों के घर में नौकर चाकर के साथ दास दासिया होती थी । ये गुलामी प्रथा भारत में उन दिनो फैली थी  । राजा किसी को प्रसन्न होकर देता तो कुछ दास दासियां भी देता । किसी पुरोहित को कुछ दास दासियां मिलती तो वो बेच देता । भगवान ने उसके विरूद्ध आवाज उठायी। गुलामी  प्रथा को बंद करने की आवाज उठायी । सम्यक आजीविका का उपदेश किया तो ये भी उसमें था किसी प्राणी का व्यापार नहीं करना चाहिए । क्रय विक्रय नहीं करना चाहिए । धीर धीरे ये प्रथा नष्ट होती चली गयी । आज भारत में यह प्रथा नहीं है । हर आदमी अपना मालिक खुद है अत्ता ही अत्तनों नाथों । हर व्यक्ति अपना मालिक खुद है । भगवान बुद्ध जाति पाति के बहुत बड़े विरोधी थे जन्म के कारण कोई बहुत बड़ा हो या छोटा हो ये समाज के लिए कलंक है । इसी प्रकार उन्होनें सम्प्रदायवाद का विरोध किया ।  धर्म ही प्रमुख है धीरे धीरे जातिवाद कमजोर हुआ । पशुओं की बलि  बंद हुई । पर सम्राट अशोक  के 50 वर्ष के बाद पुष्यमित्र शुंग नाम का राजा हुआ । उसके बाद धर्म का दमन होने लगा जातिवाद फिर प्रकट होने लगा । फिर  बाबा साहब अंबेडकर प्रकट हुए । जब धर्म का पतन हो गया था । जब मनुष्य को छूने से अपवित्र हो जाओंगे । किसी जानवर को छूते हो तो अपवित्र नही हाेगे,  पर मनुष्य को छूने से अपवित्र हो जाओगे । किसी मंदिर में जानवर घुस जाता है तो अपवित्र नहीं होता पर मानव घुस जाएगा तो अपवित्र हो जाएगा । कोई तालाब में जानवर पानी पी ले तो कोई बात नहीं पर कोई मनुष्य पानी पी ले तो अपवित्र । धर्म का का कितना बड़ा अधः पतन । बाबा साहब ने खूब अध्ययन किया भारत में ऐसा व्यक्ति  जिसने  अध्ययन किया खूब अध्ययन किया । किसी अन्य व्यक्ति ने भारत  में इतना अध्ययन नहीं किया । ये कालेज की पढ़ाई में डाक्ट्रेट लेना तो बड़ी बात है ही लेकिन उससे भी बड़ी बात दुनिया के जितमे भी धर्म सम्प्रदाय है सबका अध्ययन किया ।  तो 50 साल पहले कि भारत में या कहें क‍ि विश्व में एक ऐसी घटना घटी कि लाखो लोगो ने एक साथ बुद्धम शरणम धम्मं शरणं संघं शरणं गच्छामि कहा । जो सदियों से काम नहीं हुआ वो काम किया । इसके पीछे एक और इतिहास है उस इतिहास को भी समझ लेना चाहिए । भगवान बुद्ध के परिनिर्वाण के बाद जो उनके शिष्य थे उन्होंने देखा कि भगवान की शिक्षा में कुछ जुड़ने  ना पाए तो उन्होने 500 लोागो ने संगायन  किया । 50वर्ष बाद दूसरा संगायन किया । 250 साल बाद तीसरा संगायन हुआ तो  अशोक के गुरू मोगलीपुत्र तिस्स के नेतृत्व में हुआ।  जिसमें सबसे बड़ी बात यह हुई कि ये वाणी व ध्यान की शिक्षा भारत के पड़ोसी देशों  लाओस, कम्बोडिया, लंका थाइलेण्ड, म्यामार गयी । कितना बड़ा उपकार हुआ । अशोक के 50 वर्ष बाद ही धर्म को नष्ट किया जाने लगा और कुछ ही वर्षों  के बाद देश में इस विद्या  को सिखाने वाला कोई  आचार्य नहीं रहा । अगर पड़ोसी देशोे को न भेजी जाती तो भगवान की विद्या लुप्त हो गयी होती ।  मैं पड़ोसी देश में जन्मा हूंं बड़ा हुआ अपना आधा जीवन वहीं बिताया । वहां यह मान्यता कि भगवान बुद्ध के परिनिर्वाण के 2500 साल बाद एक एसी अवस्था आएगाी कि भारत में भगवान की शिक्षा का नामोनिशान नही होगा तब यह श‍िक्षा भारत मे आएगी । तब भारत में ऐसे पुण्यशाली लोग होगे जो भगवान की शिक्षा को स्वीकार करेगें । 1954 में 2500 वर्ष पूरे हुए  व 1955 मेें अगले 2500 वर्ष का शासन शुरू  हुआ  । बाबा साहब अध्ययन करते करते  बर्मा पहुंचेे । वहां कुछ लोगों की मान्यता थी कि अशोक ने जब सब देशो में धर्म भेजा तो स्वर्णभूमि ही  सहेज कर इस धर्म रत्न को रखेगी । और 2500 वर्ष पूरे होने पर जब भारत में इसकेा नामोनिशान नहीं रहेगा तब यह भारत में फिर लौट कर आएगी । बर्मा के लोग  प्रतीक्षा कर रहे थो कि कौन इसे लेकर जाएगा तब बाबा साहत लेकर आए  । 1954 में 6वा संगा यन हुआ । भारत में तो तीन संगायन होकर रह गए ।   4वां लंका में हुआ 5वां बर्मा में हुआ 6वा भी बर्मा में हुआं ।  ये 2500 पूरे होनेपर हुआ । बाबा साहब उसमें शामिल हुए । पहले ही उनका मानस बुद्ध की शिक्षा के प्रति श्रृद्धावान था । वो मेरे एक परम मित्र डा० सोनी की घर ठहरे । वहीं निर्णय किया मुझको बुद्ध की शिक्षा ग्रहण करनी है। 1956 में लाखों की संख्या में अपने अनुयायियों की सभा में दीक्षा दिलाते है । बाबा ने धर्म का विगुल बजाया ओर एक कामना प्रकट किया जब मैं सुनता हूं आह्लाद होता है दो बाते कीं । केवल  नाम से ही बुद्धानुयायी  नहीं बनना है तुम्हे बुद्ध की शिक्षा को धारण करना है केवल नाम के लिए बौद्ध कहने लगोगे तो कुछ नही बनेगा । दूसरी बात कि सारे भारत में  शिक्षा फैलनी चाहिए तो समस्या का सही समाधान होगा । तो सारे देश का कल्याण होगा । पीछे इतिहास चला आ रहा  है कि भारत जाएगी तो पूरे  विश्व मे फैलेगीी  । थोड़ से समय में ही  डंका बजा दिया शंख बजा दिया । पर इसके बाद थोडे से समय  में ही उनका अंत हो गया । समाज के एक वर्ग को उनका अनुयायी बनाने से सारे भारत  मे कैसे फैलेगी   ?    अशोक के समय सारे भारत मे  फैली। पर ये शिक्षा की महानता है कि फैलेगी । अशोक अपने शिलालेख में कहता है कि मुझसे पहले इसे देश में  बहुत राजा हुए सब चाहते थे सब शांति से रहे । पर सब असफल हुए । पर मैं सफल हुआ क्यो हुआ?  झूठ नहीं है शिलालेख में लिखा है । उस व्यक्ति का एक इतिहास पहले चंड स्वभाव का , बड़ा अत्याचारी । अपना साम्राज्य फैलाने के लिए खूब अत्याचार कियए । किसी संत के सम्पर्क में आया चंडाशाेक से धर्माशेाक हो गया । जल्दी बात समझ मे आ गयी कि भगवान की शिक्षा बहुत अच्छी है । गहराई से उसे समझने की लिए विपश्यना की । भगवान ने कोरे उपदेश नहीं दिए । उनक उपदेशों को अपने जीवन के उतारने के लिए विपश्यना दी  । उन दिनों में राजस्थान के बैराठ में उसका केन्द्र था । पाटलीपुत्र से 300 दिन के लिए बैराठ जाता है  और विपश्यना की । जैसे जैसे विपश्यना की गहराइयों में जाता है उसके मन में यही भाव आता है एहि पस्सिको आओ तुम भी करके देखो । इस सम्राट में जागा तुम भी करके देखो । राजा की संतान होती है प्रजा । अरे इनको यह विपश्यना मिल जाए तो सम्दाय में झगड़ों से दूर हो जाएगें । क्यों सफल हुआ एक तो उसने मंत्री बनाए । हजारोंं अमात्य बनाए उनका काम था देश में घूम घूम कर देश में बुद्ध की शिक्षा को फैलाना ।  पर उससे बड़ी बात यह थी कि मैने लोगों को विपश्यना सिखायी । बाबा साहब का संकल्प कि बुद्ध की शिक्षा सारे भारत में फैलेगी तो पूरा होकर रहेगाा । कैसे फैलेगी ?  उस संत की बात भविष्यवाणी को पूरा होना है । मैं बहुत कट्टर सनातनी घर में  जन्मा । घर में माना जाता था कि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार है पर  भूल कर भी उनकी शिक्षा के पास नहीं  जाना । बुद्ध की शिक्षा से दूर रहो । 31 साल की उम्र में संगायन हो  रहा था तो उससे मुझे जोड़ दिया । पहले तो मैं समझ ही नहीं पाया क‍ि जब  मैं भगवान बुद्ध शिक्षा काेे स्वीकार नहीं करता तो  मुझे क्यो जोड़ा गया  ?  पर फिर पता चला कि  वहां            शाकाहारी लोग होगें उनकी जिम्मेदारी मुझे दी गयी  । सौभाग्य की बात हुई क‍ि धर्म के सम्पर्क में  आया । एक वर्ष बीतते बीतते २५००वे वर्ष में विपश्यना मिल गयाी । जीवन बदल गया । अब तो बुुद्ध की वाणी जीवन में उतार कर देखी । कितनी महान है कितना शुद्ध है धर्म ।  जातिवाद का नामोनिशान नहीं सम्प्रदायवाद का निशान नहीं । उन्होंने अपनी शिक्षा को धर्म कहा । विपश्यना यही कराती है व्यक्ति को धार्मिक बनाती है । सत्य धर्म सद्धर्म  स‍िखाती है ।                क्या सदधर्म जो सच्चाई तुम्हारी अनूभूति पर उतर रही है वही धर्म है । ये दार्शनिक मान्यता ये मान्यता ये नहीं ।  सच्चाई जो अनूभूति पर उतरे । और देा शब्द दिए। केवल परिपूर्ण केवल परिशुद्धंम  । केवल परिपूर्णम इसके कुछ जोड़ना नहीं । उनकी शिक्षा में कुछ भी जोड़ना दोष की बात है । बहुत बड़े दोष की बात है । आदि में कल्याणकारी मध्य में कल्याणकारी अंत में कल्याणकारी । शील पालन करो तो ही कल्याण होना शुरू हो गया मन को वश में करनेके लिए समाधि का अभ्यास करों तो और कल्याण हो गया । मन को निर्मल करने में प्रज्ञा का अभ्यास करो तो कल्याण हो ही गया  । कुछ जोड़ोगो तो बिगाड़ दोगे । कुछ निकालने के लिए है ही नहीं । इसीलिए मैं भगवान की शिक्षा को शुद्ध धर्म कहता हूं । उसमें कुछ ऐसा है ही नहीं  जिसे अशुद्ध कह सकेें ।  बाबा साहब ने जो डंका बजाया वो उसे आगे नहीं ले जा सके तो उस काम को विपश्यना ने आगे बढ़ाया ।  तो बुद्ध का धर्म थोड़े से लोगों तक सीमित नहीं सबका धर्म है । विपश्यना के शिविर में कोई एसा सम्प्रदाय नहीं जिसके अनुयायी नहीं आते हो सदाचार का कौन विरोध करेगा ?  यहां तो सदाचार सिखाया जाता है और सदाचार के लिए मन को वश में करना होता है । सदाचार का भला  कौन विराध करेगा । सांस आ रहा हे सांस जा रहा है इस पर कोई नियंत्रण नहीं  नहीं करना । कोई इमेज नहीं । कोई शब्द नहीं । अगर कोई शब्द जोड दे ।   साथ साथ बुद्ध बुद्ध कहेंगे तो राम वाले कहेगें कि हम तो राम राम कहेगें , अल्लाह वाले कहेगें हम तो अल्लाह अल्लाह कहेंंगें । जब सांस आता है तो नहीं कह सकते कि हिन्दू सांंस है इसीलिए धर्म सबके लिए है । यह साधना चित्त को देखना सिखाती है वासना को देखना सिखाती है ।  जो विकार जागा उसे देख रहे हैं ।  जब क्रोध आता है तो उस पर  लेबल कैसे लगाएगें कि  यह हिन्दू क्राेेध है यह व्याकुलता हिन्दू है कि मुस्लिम है ।  धर्म नियामता है जब भी मन को मैला करोगे तो दण्ड मिलेगा ही कोई करे । हिन्दू मुस्लिम कोई करे । विकारों से मुक्ति पाओगे चित्त विकारो से मुक्त हुआ तो प्यार जागता है । तो इतना प्यार जागता है इतनी करुणा जागती है तो इसे क्या कहोगे ? दुनिया भर के सभी सम्प्रदायों के लोग इसे सीखने आते है । क्रिश्चियन मिशनरी ये देखने आए कि मैं उनके अनुयायियों को बिगाड़ तो नहीं रहा । तो तीन मिशनरी और 2 मदर  सुपीरियर आए । 10 वें दिन मदर सुपीरियर कहती है यू आर टीचिंग क्रिश्चिएनिटी इन द नेम आफ बुद्धा ।   धर्म सबका होता है । सबके दुख दूर करता है । किसी को अपने बाड़े में नहीं बांधता । क‍िसी ने भगवान के शिष्य से पूछा आपका क्या सम्प्रदाय है । तो कहता है शील सदाचार ही हमारा सम्प्रदाय है । जो पालन करने लगे वो ही  हमारे पाले आ गया । बुद्ध ने धर्म को प्रमुख बनाया । भारत मे यही फैलना चाहिए कि बुद्ध की शिक्षा केवल एक सम्प्रदाय के लिए नहीं सबके लिए है तब बाबा साहब का सपना पूरा होगा । 
 सपना पूरा हो रहा है । कोई आकर देखे विपश्यना शिविर में अलग अलग जाति के लोग  बैठे है अलग अलग सम्प्रदाय के लोग  बैठे है लोग एक साथ रहते है । भोजन के लिए जाते है । उसी पंक्ति में ऊंची जाति वाला खड़ा है पीछे कोई तथाकथित नीची जाति का खड़ा है  । उसी में सेक्रेटरी खड़ा है उसी  में चपरासी है । उसी में करोड़पति उसी में ब‍िना पैसे वाला । उसी में अनपढ़ खड़ा है तो उसी में  प्रोफेसर । कोई फर्क नहीं । और आज इसीलिए धीरेे धीरे सारे भारत में ही नहीं पूरे विश्व में फैल रहा है । विश्व के कोने कोने में इसके केन्द्र है । केन्द्र का मतलब यह कि 10 दिन वहीं रहना होता है ।  100 से अधिक केन्द्र भारत में और पूरे  विश्व में हो गए हैं ।  बाबा साहब का यह स्वप्न पूरे होने की शुरूवात हो गयी हे । जो अपने आप को बाबा का अनुयायी कहता है जो बुद्ध का अनुयायीी कहता है वो विपश्यना करके ही धर्म को अपने जीवन मेें उतार सकेगा । जो अपने को अनुयायी नहीं कहते उनके लिए भी कल्याणकारी । जो अनुयायी कहते हैं  उनके लिए भी कल्याणकारी । यह विशेषता है बुद्ध के धर्म की । यही सपना बाबा साहब का कि  सारा देश बुद्ध की शिक्षा के रंग मे रंगे । मुझे भविष्य दीखता है कि एक सदी भी नहीं बीतने पाएगी कि सारा भारत बुद्ध की शिक्षा के रंग में रंग जाएगा ।
 यह जाति पाति का भेद भाव सम्प्रदयावाद का भेद सामाप्त हो जाएगा  । ये कोढ़ हैं ।  दोनोंं समाप्त होगे । बुद्ध की शिक्षा से होंगे । बाबा साहब के स्वप्न पूरे होगे  । भगवान की शिक्षा ऐसी है जो सबका मंगल करती है सबका कल्याण करती है । कोई हो मुस्लिम हो।  मुस्लिम देशों में में शिविर लगते है । एक देश में तो  केन्द्र भी है । अब तक कोई 5000 ईसाई पादरी और साध्वी आए । और आए जा रहे है उनको अपना सा लगता है । ऐसे ही मौलवी जब सेंटर नहीं था मस्जिद में, गिरजाघर में मंदिर में शिविर लगे । जब केन्द्र बन गया तो सब तरह के लोगो के आचार्य तैयार किए ।  मुस्लिम ईयाई यहूदी सिख । एक बात देखकर मन प्रसन्न होता है जिस देश में लोगों को अस्पृश्य कहकर दुत्कारा गया हो  अब विपश्यना मे कुछ लोग  विपश्यना  में कुछ इतने आगे बढ़ गए कि विपश्यना के आचार्य बन गए । एक अस्पर्शय कही जानेवाली जाति का व्यक्ति गद्दी पर बैठा है और सामने से साारे लोग उनके चरणों के बैठकर धर्म सीखते है । ये एक ऐसा दृश्य है कि जो किसी को भी प्रसन्न करता है जिसे तुम अछूत कहते थे कि आज उसके चरणो में मे बैठकर धर्म को सीख रहे हो क्योकि वो धर्म का प्रतीक है। अब उसके शिविर मे सब जातियों के लोग  बैठते है तो भगवान का धर्म सबको अच्छा आदमी बनाता है।  सत्य के सहारे सहारे चित्त को निर्मल करते करते दुख से  पार हो जाते हैं । समता का राज्य स्थापित होता है । बाबा साहब ने लाखों की संख्या में लोगो को गयी गुजरी अवस्था से ऊपर उठाया । एक युगपुरूष ही ऐसा कर सकता है । उन्होने देश का संविधान बनाया जिसने मनुस्मृति के सिद्धान्त को फाड़ कर फैंक दिया । और सारे देश से उसे स्वीकार किया । सरकार इसे समझती है पर सरकार का कानून सब जगह लागू नहीं हो सकता।   समाज के लोगों  में समानता का भाव आना चाहिए । एक दिन ऐसा आएगा कि जब लोग सोचेंगे कि कभी हमारे देश में ऐसी गंदगी थी । तब वो केवल एक इतिहास याद करने के लिए रह जाएगा । तब बाबा साहब का स्वप्न पूरा होगा  । दो बात का प्रण लें । एक बुद्ध की शिक्षा को जीवन में उतारना है  । पंचशील का  पालन करना है । तो मै आज इस धर्म सभा में  एक निवेदन करता हूं कि एक शील तो पालन करो । पांच का करो अच्छा है पर  कम से कम एक का तो पालन करो ।  सुरा मेरय पमादट्ठानं  वेरमणि । नशे पते का सेवन नहीं करेंगे  । यह प्रतिज्ञा करके जाएं ।  इस धर्म सभा में आए हैं । भिक्षुओ को बुलाया है मुझे बुलाया है तो यह प्रतिज्ञा करें कि हम नशे पते का पालन नहीं करेगें । जो इस नशे पते के शील को तोड़ेगा तो वह और शील भी तोड़ता ही चला जाएगा । और यदि इस शील का पालन करेगा तो बाकियों का पालन आसान हो जाएगा । 
   दूसरी ये कि इसको एक समुदाय तक सीमित न रखें । ये सबका है । एक का नहीं । सबके लिए खुला है । सारे विश्व में धर्म की गंगा बहे, तो सही माने में कल्याण होगा । 
                                                                      भवतु सब्बं मंगलम