Monday, December 14, 2015

भारतीय मुसलमानों से मेरा प्रश्न -
        जावेद अहमद घमीदी जो पाकिस्तान के एक विद्वान हैं ने बताया है कि आतंकवाद जो मुसलमानों द्वारा फैलाया जा रहा है उसका कारण ये मदरसों में पढ़ाया जा रही चार बाते हैं । पहली दुनिया में अगर कहीं शि‍र्क हो या कुफ्र हो या इख्ति‍हाद हो (apostacy) यादि कोई शख्स इस्लाम छोड दे तो उस सजा मौत होगी और ये सजा हमें नाफिज करने का हक है । दूसरी बात ये सिखाई जाती है कि दुनिया में गैर मुस्ल‍िम सिर्फ महकूम करने लिए पैदा किए गए हैं मुसलमानों के सिवा किसी को दुनिया पर हकूमत करने का हम नहीं है । गैर मुसलमानों की हर हकूमत एक नाजायज हकूमत है जब हमारे पास ताकत होगी हम उसे समाप्त कर देंगे । तीसरी चीज  है कि मुसलमानों की एक ही हकूमत होनी चाहिए जिसे खि‍लाफत कहते है। चौथी चीज कौमी रियासत एक कुफ्र है इसकी कोई जगह इस्लाम नहीं है । ये मुसलमानों के मदरसों में पढायी जाने वाली चार चीजें जो हर मदरसे में पढ़ायी जाती हैं । जब तक ये चीजे हमारे मदरसों में पढ़ायी जाती रहेगीं आतंकवादी पैदा होते रहेंगें । और ये लोग दुनिया को जहन्नम बना देंगे । 
     मेरा भारत के मुसलमानों से प्रश्न है कि क्या भारत के मदरसों में भी यही शि‍क्षा दी जाती है यदि हां तो वे तो इसे तुरंत बंद करे अन्यथा दंगों से बचा नहीं जा सकता । मेरी भारत सरकार से भी मांग है कि वे जांच कमिशन का गठन करे जो यह जांच कर बताए कि भारत के मदरसों में छोटे बच्चों को क्या पढ़ाया जा रहा है  ?

Saturday, August 29, 2015

भारतीय सेनाओं में अफसरों की कमी - अंग्रेजी की अनि‍वार्यता के कारण

    सरकार द्वारा भारतीय सेनाओं में अफसरों की कमी के लिए विभिन्न योजनाओं का हवाला दिया गया है जिससे देश के नौजवान सेना की ओर आकर्षित हों व सेना में नौजवानों की कमी समाप्त हो ।
सेना में वास्तविक कमी का कारण है कि एन डी ए व सी डी एस की परीक्षा में अंग्रेजी भाषा में ग्रुप डिस्कशन व साक्षात्कार लिया जाता है जिस कारण हिंदी माध्यम से पढ़े हुए बच्चे इन परीक्षाओं में सफल नहीं हो पाते । हिन्दी माध्यम से पढ़े बच्चे तुरंत अंग्रेजी बातचीत करना प्रारम्भ नहीं कर सकते । क्या कभी इन उच्चाधिकारियों ने भारत के गांवों का भ्रमण किया है जहां आज भी सुबह व सांय के समय सैकड़ों बच्चे सेना के जाने के लिए आवश्यक शारीरिक दक्षता प्राप्त करने के लिए दौड़ते दिखायी देते हैं । एसा नहीं है कि देश के लोगों ने अपने बच्चों को सेना में भेजना बंद कर दिया है अथवा देश में एक योग्य बच्चों का अभाव हो गया है जो सेना में अधिकारी बनने के योग्य न हों ।
      यदि सरकार एेसी परीक्षाओं में अंग्रेजी की अनिवार्यता समाप्त कर दे तो आवश्यकता से कई गुना भर्ती होना संभव है । केन्द्र सरकार से मांग की जाती है पूरे देश में सभी परीक्षाओं व उच्च शि‍क्षा की पढ़ाई से अग्रेजी की अनि‍वार्यता को समाप्त करे ।

Thursday, July 30, 2015


                       विपश्यना द्वारा व्यसनों से छुटकारा
पहाड़पुर में २६ अप्रैल से ७ मई के शि‍विर में भाग लिया, जिससे मुझे तीन प्रकार के लाभ हुए-
  प्रथम- मेरी दाहिनी भुजा हमेशा कांपती थी, अब कंपन नहीं रहा।
  दूसरा- मुझे बगैर शराब पिये भूख एवं नींद नहीं आती थी, पर अब खुलकर भूख लगती है और नींद भी आती है।
 तीसरा- शराब जैसा दुर्व्यसन जिसे दिन-रात एवं सुबह-शाम पीते रहता था, उससे छुटकारा पाया। ऐसा कल्याणकारी      मार्ग       अगर मेरे जीवन के आठ वर्ष पूर्व मिला होता, तो यह दुर्व्यसन शायद मेरे जीवन में नहीं आया होता।
  मैं चौतमा (बर्मा) से १९३८ में भारत आया और बाद में बादलपुर ग्राम-पंचायत का सरपंच होने के बाद १९७७ से कुछ   कुसंगत  एवं अ‍भि‍मानवश पीने लगा। इसके पहले इस जहर को छूना भी पाप समझता था। अब मैं शराब पीनेवाले भाइयों से हार्दिक कामना करूंगा कि वे साधना-‍शि‍विर में बैठकर पूरा-पूरा लाभ उठायें।
   इस कल्याणकारी मार्ग की एक झलक से ही मेरे जीवन का नक्शा बदलते जा रहा है। काश ! यह मार्ग मुझे पहले ही मिला हेाता । फिर भी मुझे आत्म-संतोष है कि-
 भूला उसे न कहिए जो घर आये शाम को।
कोटि कोटि प्रणाम के साथ आपकी मंगल कामना चाहता हॅूं
                                                                        - संपतलाल (पहाड़पुर, जिला बेतूल, मध्य प्रदेश)
मेरे जीवन-व्यवहार में और समस्याओं के समाधान में काफी सुधार हुआ है। व्यसन से सर्वथा मुक्त‍ि मिल गयी है। अब पूर्ण विश्वास हो गया है कि विपश्यना ही विमुक्त‍ि का एक मात्र मार्ग है।
                                                                              - भैयासाहब सोमकुवर [आयकर अधि‍कारी]
बहुत ही प्रसन्नता अनुभव करता हूं। मन बहुत शांत हो गया है। लोगों से मिलने में बहुत खुलापन आया है और नशे-पते से पूर्णतया मुक्त‍ि मिल गयी है। अधि‍क गहरार्इ से साधना करने के उदे्श्य से ही धम्मगिरि आया हूं।
                                                                                             - ब्रोक पाईटेल (कैनेडा)
[युवा संगीकार जो घूमते-फिरते कहीं शि‍विर का साईनबोर्ड देखकर शि‍विर करने चला आया और फिर कई शि‍विरों में बैठा और सेवा दी।]
लंबे समय तक मैं माद‍क द्रव्यों के सेवन में बुरी तरह व्यस्त रहा। १९७१ में प्रथम शि‍विर के पश्चात से ही केवल शराब को छोड़कर उन सबसे मुक्त‍ि पायी। अब दो वर्षों से तो मदिरापान भी छुट गया। इस ध्यानविधि‍ के अभ्यास से मन की नैसर्गिक समता का अर्थ जाना तथा अनुभव ने यह पुष्ट किया कि सभी नशीले पदार्थ स्वयं असंतुलन उत्पन्न करते हैं जो स्वयमेव अंततोगत्वा दु:ख ही लाते हैं।
इस अभ्यास के फलस्वरूप शरीर और मन को क्षुब्ध करने वाले वातावरण के प्रति सजगता आने से एवं उन पर नियंत्रण कर पाने में समर्थ होने से अब शरीर से स्वस्थ रहता हूं तथा मानसिक रूप से अधि‍क शांत, प्रसन्न तथा बेफिक्र रहने लगा हूं। वर्तमान को जैसा है वैसा स्वीकार करने की क्षमता आ चली है। अन्य व्यक्त‍ियों को बदलने एवं उनकी आलोचना करने की वृत्ति‍ घटती जा रही है। ऐसे सद्रगुण स्वभावत: ही घरेलू वातावरण में अत्यंत मधुर संबंध स्थापित करने वाले होते हैं।
इस कल्याणकारी विधि‍ द्वारा समस्याओं के अनित्य स्वभाव के अधि‍काधि‍क ज्ञान से उनको सुलझाने का मार्ग मिल गया है। देखनेमात्र से वे तिरोहित हो जाती हैं। वैसे अब उतनी समस्याएं रही भी नहीं। पहले चुनौतियों से भागकर बचने का व्यर्थ प्रयास करता था। अब तो वे देखनेमात्र से स्वयं ही शक्त‍िहीन हो जाती हैं।
                                                                       - फ्रीडेल रोजनबक (जर्मनी)
तीन वर्ष की उम्र में माता का देहांत हो जाने के कारण मेरा बचपन बहुत कष्टों में बीता। अपने अध्यवसाय के बलपर मैं इस अवस्था पर पहॅुंचा। परंतु दो वर्ष पूर्व आपके निर्देशक में विपश्यना का मार्ग अपनाने के बाद तो जीवन ही बदल गया। बहुत सुधार हुआ। मदिरा तो बिल्कुल ही छूट गयी। सिगरेट भी बहुत मात्रा में कम हो गयी है। शरीर और मन में तनावों से मु‍क्त‍ि मिली है। विश्वास है कि विपश्यना का अभ्यास करते रहने पर सभी क्षेत्रों में और सुधार होंगे ही।“                                          
                                                                           - ब्रि‍जयसिंघे (श्रीलंका)
१९७२ में विपश्यना सीखने के बाद मेरा गांजे-चरस का व्यसन अब सर्वथा छूट गया। विपश्यना की वजह से अब मेरे मन में इसके प्रति जरा भी आकर्षण नहीं रह गया।       
                                                                               - ब्र‍िगिटी मूलर
विपश्यना साधना की वजह से नशे का मेरा व्यसन अब सर्वथा दूर हो गया है। मेरी मन: स्थि‍ति में बहुत शांति और प्रश्रब्धि‍ आयी है। लोगों  के साथ मेरा व्यवहार अ‍धि‍क प्रसन्नपूर्ण और अधि‍क ईमानदारीपूर्ण होने लगा है। विगत बाईस महीनों के अनुभवों से मुझे लगता है कि मेरे जीवन की यह सबसे म‍हत्वपूर्ण उपलब्धि है।“                                                                               -कु. जोआना रार्बट (यार्कशायर, इंग्लैंड)
इस साधना द्वारा गांजे, चरस और एल. एस. डी. के प्र‍ति मेरी आसक्त‍ि टूटी है। अन्य लोगों के साथ मेरे व्यवहार में बहुत सुधार हुआ है और अनेक प्रकार की दुर्भावनाओं में कमी आयी है। जिन परिस्थि‍तियों में पहले मैं बहुत क्रुद्ध हो उठता था, अब वैसी ही परिस्थि‍तियों का धीरज के साथ सामना कर सकता हूं।
                                                                         - मिकी अबसीन (कैनेडा)
विपश्यना साधना से मेरा नशे का व्यसन टूटा है। मैं पहले मदिरापान किया करता था, अब वह छूट गया है। पहले सिर-दर्द होते ही गोलियां लेनी पड़ती थीं, अब इनसे छुटकारा मिल गया है। मानसिक स्तर पर बहुत शांति अनुभव करता हूं। लोक-व्यवहार में मित्रों के साथ भी जो नाटकभरा जीवन चलता था अब उससे छुटकारा हो गया है। पहले जैसा भावावेश अब मुझमें नहीं रहा है।                         
                                                                         -मौल पीटर (स्वि‍ट्जरलैंड)
मेरे मानस में अब अधि‍क शांति आयी है। औरों के साथ मेरा व्यवहार-जगत सुधरा है। समस्यओं का सामना करने की क्षमता बढ़ी है। मैं यह साधना-पद्धति पाकर अपने धन्य मानता हूं। मुझे जीवन में सही दिशा प्राप्त हो गयी है।                                   
                                                                     -रोडनी जोन परनियर (कैनेडा)
[बत्तीस-वर्षीय; ईसाई अनाथालय में पला; बचपन में अत्यंत उद्ंड; स्कूल छोड़कर चला गया और निरक्षर रहा; बरसों तक गांजे, चरस आदि का सेवन; मार्च १९७३ में मुंबई में विपश्यना शि‍विर में बैठा; तब से उत्तरोत्तर सुधार और अब नशे-पते से पूर्णतया मुक्त]
विपश्यना के अभ्यास से अब नशे-पते की ओर से मेरी रूचि‍ मिटी है और इससे पूर्ण छुटकारा मिल गया है। जीवन में अधि‍क संवेदनशील हो गया हूं और सहायक भी।
                                                    -जोन अलेक्जेंडर पीबल्स (न्यू साउथ वेल्स, आस्ट्रेलिया)
विपश्यना साधना के अभ्यास से अब नशे-पते की ओर से मेरी रूचि मिटि है और इससे पूर्ण छुटकारा मिल गया है। जीवन में अधि‍क जिम्मेदार हो गया हूं। धीरज और करूणा बढ़ी है।“     
                                                                        -एवाल्ड विल्हैल्म (जर्मनी)
पहले नशा-पता करता था, अब विपश्यना के प्रभाव से बिल्कुल छूट गये हैं। जीवन के हर क्षेत्र में सुधार हुए हैं। अपने तनावों के प्रति जागरूक रहने का स्वभाव बढ़ा है। झुंझलाहट आती है तो देर तक टिकती नहीं
                                                                          -पीटर वाद्य (न्यूजीलैंड)
पहले भांग, चरस, गांजा, अफीम, एल.एस.डी. आदि सभी प्रकार के नशों का आदि था। विपश्यना के प्रभाव से अब उनसे पूर्णतया मुक्त हूं। जीवन-व्यवहार में शांति आयी है। समस्याओं का सामना आसानी से कर पाता हूं परिवार के लोंगो के साथ बिगड़े हुए संबंध सुधरे हैं। सब के प्रति मैत्री जागने लगी है   
                                                       -रोनाल्ड योसेव (न्यू जर्सी, अमेरिका) [टेक्नी‍शि‍यन]
मेरे नशे-पते पूरी  तरह छूट गये हैं और य‍ह विपश्यना साधना के प्रभाव से ही हुआ है। मेरा शारीरिक स्वास्थ्य बहुत सुधरा है। मन शांत रहने लगा है, सहिष्णुता और समझ बढ़ी है। समता और मानसिक संतुलन भी।
                                                                      -जोर्ज कासिस (ग्रीस) [मजदूर]
विपश्यना के प्रभाव से मादक पदार्थों का सेवन पूर्णतया छूट गया है। जीवन के हर क्षेत्र-शारीरिक, मानसिक, जनसंपर्क-में सुधार हुए हैं।                                    
                                                                 -फ्रांज जेलसाकर (आस्ट्रेलिया) [छात्र]
इस साधना की वजह से पहले से कम घबराता हूं एवं जीवन के प्रति दृष्टि‍कोण बदला है। पहले मैं सिगरेट पीता था । अब तो धुँआ भी अच्छा नहीं लगता।         
                                                                   -बद्रीप्रसाद तोदी (खग‍ड़ि‍या, बिहार)
विपश्यना साधना से मानसिक शांतता मिली है और व्यसनों से मुक्त‍ि।     
                                                                       -बालकृष्ण जोशी (इगतपुरी)
नशा छूटा हैं और विपश्यना के प्रभाव से छूटा है।                            
                                                                     - जोर्ज कशि‍श (ग्रीस) [मजदूर]
मेरी नशे-पते के प्रति जो आसक्त‍ि थी वह विपश्यना के बल से पूर्णतया छूट गयी और अब मैं किसी प्रकार के नशे का सेवन नहीं करती।
अभी शारीरिक और मानसिक तनाव, ऐंठन और विकलताएं हैं परंतु जीवन में चिंताएं घटी हैं। चिंतन में अधि‍क स्पष्टता आयी है।                                       
                                                              - कु. एलियानोर मैरी (न्यूजीलैंड) [छात्रा]
१९६५ में एक कार दुर्घटना में मेरी रीढ़ की हड्डी सात जगह से टूट गयी थी और, परिणामत:, कुछ दूर में लकवा हो गया था। १९७६ में विपश्यना शि‍विर में स‍म्म‍िलित होने के बाद इसमें बहुत सुधार हुआ है। मानसिक स्तर पर अब मैं अपने आप के साथ अधि‍क शांति से रह  पाता हूं और लोगों के साथ भी संबंध सुधरे हैं, क्योकिं उन्हें स्वीकारने में आसानी हुई है। पहले चरस, एल.एस.डी., मशरूम और मेस्कालिन जैसे नशों का आदि था। अब विपश्यना के प्रभाव से इनसे पूर्णतया मुक्त हो गया हूं।   
                                                         -मैक्सवैल जोहन रयान (न्यू साउथ वेल्ज, आस्ट्रेलिया) [अध्यापक]
विपश्यना साधना के निश्च‍ित प्रभाव से मेरे सारे नशे-पते छूट गये हैं। मुझे जो माइग्रेन-सिरदर्द का रोग था व‍ह अब काबू में आ गया हैं। मेरे जीवन में अधि‍क सहनशीलता आयी है और अब मुझमें स्वार्थांधता में बहुत कम हुई है।                                                           
                                                                    -नोरिस (आस्ट्रेलिया) [अध्यापक]
इस साधना के निश्चि‍त प्रभाव से मुझे सभी प्रकार के नशे के व्यसनों से सर्वथा मुक्त‍ि मि‍ली है और शारीरिक तथा मानसिक क्षेत्र में अथवा व्यवहार-जगत में समस्याओं के समाधान में बहुत सुधार हुए हैं  
                                                                        -लिंडा कलेंबी (अमेरिका)
धर्म में प्रवेश पाने के पूर्व अनेक प्रकार के नशे करने की आदि थी, लेकिन अब उनसे पूर्णतया छुटकारा हो गया है। और जीवन के हर क्षेत्र में बहुत बड़ा सुधार हुआ है।           
                                                                   -ली एलन सोलोमन (आस्ट्रेलिया)
मैं अब किसी प्रकार के नशे का सेवन नहीं करती। विपश्यना का नियमित अभ्यास करती हूं और, संभवत:, अब मैं अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों के प्रति अधि‍क सजग हो गयी हूं। अब मेरे लिए वस्तुत: जीवन में कोई बड़ी समस्याएं नहीं हैं।                                                        
                                                                               -विन्नी (इंग्लैंड)
दस दिन के पहले शि‍विर में शामिल होने के बाद भी मैं पुन: अपने पुराने गंदे रास्ते पर चलने लगा। पंरतु शीघ्र ही सँभल गया। मुझे उस रास्ते का ओछापन और छिछोरापन जल्द ही समझ में आने लगा। अब मैने सभी प्रकार के नशीले पदार्थेां का त्याग कर दिया है। मुझे अपने व्यसनों और आसक्ति‍यों से छुटकारा मिला है। अब मैं अपना अधि‍कतर समय साधना के अभ्यास में और धर्म के अध्ययन में बिताने लगा हूं। मैं आपका आभारी हूं।“                                                           
                                                                              -साधक(अमेरिका)
मैं जब से साधना में से वापस आया हूं, तब से मैंने शराब पीना छोड़ दिया है। पहले मेरे घर में अशां‍ति रहती थी, लेकिन अब नहीं रहती है।                                            
                                                                          -साधक (मुंबई) [मजदूर]
                                  
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स्वास्थ्य, चिकित्सक एवं विपश्यना - डॅा. आर. एम. चोखानी


      अंग्रेजी भाषा का शब्द (“health”) एंग्लो-सैक्सन शब्द (“hal”) से निकला है जिसका अर्थ होता है ‘whole’ (संपूर्ण) और इस प्रकार इससे आशय निकलता है किसी व्यक्त‍ि का समूचा अस्त‍ित्व। हिंदी भाषा में (health) का पर्याय ‘स्वास्थ्य’ होता है और ‘स्वस्थ’ का अर्थ है ‘स्व’ में स्थि‍त। विश्व स्वास्थ्य संगठन (world Health Organisation) द्वारा दी गयी परिभाषा के अनुरूप (health) (हैल्थ) को जैविक-मानसिक-सामाजिक मॅाडल के रूप में दर्शाया जाता है जिसमें जैविक,  मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक पक्ष किसी सक्रिय एवं एक दूसरे को प्रभावित करने बाली प्रणाली में एक-साथ कार्यशील होते हैं। इनमें मनोविज्ञान या मन का महत्व सर्वाधि‍क है क्योंकि यह मनुष्य के पूरे जीवन और उसके कार्यकलापों की केंद्रीय परिचालन शक्त‍ि है। तदनुसार (psycho-somatics) (मनो-दैहिकी), जो कि मन और शरीर के संबंध का अध्ययन करती है, स्वास्थ्य-संबंधी विज्ञानों का सिरमौर मानी जाती है। इसके कई प्रभेद हैं जैसे-मनो-स्त्रायु-प्रतिरक्षण विज्ञान (psycho-neuro-immunology), मनो-अंतर्स्रावी-ग्रंथि विज्ञान (psycho-endocrinology), मनो-हृदय विज्ञान (psycho-cardiology), मनो-चर्म विज्ञान (psycho-dermatology) इत्यादि । सकारात्मक स्वास्थ्य (positive health), जो कि जीवन की पूरी गुणवत्ता (quality of life) को लेकर चलने का भाव है, एक ऐसी आदर्श स्थि‍ति है जिसे प्राप्त करने के लिए मानव जाति सदा प्रयत्नशील रही है।
  विपश्यना साधना अपने मन वा शरीर की सीमा के भीतर आत्म-निरीक्षण करने की एक वैज्ञानिक विधि है। यह अपने विचारों, भावनाओं, निर्णयों और संवेदनाओं पर काम करने वाले प्रकृति के सार्वभौम नियमों (धर्म) को जानने वा उनका पालन करने से स्वास्थ्य-लाभ करने की विधि है। इसका उद्देश्य  है कि मन की नकारात्मकताओं और पूर्वाग्रहों को पूरी तरह से दूर कर दिया जाय जिससे मन की सच्ची शांति प्राप्त हो और सुखी तथा स्वस्थ जीवन बिताया जा सके। विपश्यना के शि‍विर हर साधक के लिए खुले है चाहे उसकी कैसी भी आस्था, राष्ट्रीयता, वर्ण अथवा पृष्ठभूमि हो। यहां तक कि रोगग्रस्त भी भाग ले सकते है यदि वे आचार संहिता का पालन करने, साधना-संबंधी निर्देशों को समझने और उनके अनुसार अभ्यास करने में समर्थ हों। इसके अलावा केंद्र पर ऐसे रोगी की विशि‍ष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति का उचित प्रबंध भी संभव होना चाहिए। शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के कई रोगों में विपश्यना लाभकारी सिद्ध हुई है। इससे संबं‍धि‍त काफी शोध-सामग्री उपलब्ध है। पंरतु इस प्रकार के स्वास्थ्य-संबंधी लाभ विपश्यना के उपफल (byproduct) समझे जाते है और यह परामर्श दिया जाता है कि इनको साधना का मुख्य उदे्श्य न समझा जाय जिससे साधना के लिए किये जाने वाले प्रयत्न कहीं निष्फल न हो जायॅं। स्वस्थ होना- रोग से छुटकारा पाना नहीं, बल्क‍ि मानवीय दु:ख का वास्तविक रूप से निर्मूलन-य‍ह विपश्यना का उदे्श्य है। इसके अभ्यास से साधक का मानस मैत्री, करूणा, मुदिता वा समता भाव से भर जाता है। जीवन के प्रति उसका दृष्ट‍िकोण पूरी तर‍ह से बदल जाता है जिससे वह सभी प्रकार के उतार-चढ़ाव, यहां तक कि रोग और मृत्यु को भी शांति और मृत्यु को भी शांति और धैर्य से झेल सकता है।
   चिकित्सा-शास्त्र का अभ्यास, विज्ञान और कला इन दोनों पक्षों का संयोजन है। चिकित्सक को न केवल रोग के निदान और इसके उपचार में निपुण होना आवश्यक है बल्क‍ि  उसमें ऐसे दुखि‍यारों के प्रति प्रेम और करूणा पर आधारित मानवोचित समझ भी होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त हर समय मानवीय दु:खों से वास्ता पड़ते रहने पर व्यावसायिक अकर्मण्यता (professional burn-out) की स्थि‍ति आ सकती है यदि चिकित्सक नियमित रूप से अपनी स्वायत्तता और अपने ज्ञान को विकसित करने का प्रयत्न न करता रहे। ऐसे पुरूषार्थ से ही वह दूसरों के जीवन में उतार-चढ़ावों की स्थि‍ति में एक व्यावसायिक लंगर (professional anchor) के रूप में काम आ सकने लायक अपनी क्षमता को बढ़ा सकता है। जैसा कि एक कहावत है- “चि‍कित्सक, अपनी चिकित्सा कर!”  विपश्यना इसके लिए रास्ता दिखाती है।
 भि‍न्न-भि‍न्न प्रकार की चिकित्सा पद्धतियों के चि‍कित्सा के लिए विपश्यना सार्थ‍क भी है और स्वीकार्य भी, क्योंकि इन सब का उदे्श्य तो समान ही है, अर्थात लोगों को स्वस्थ करना और स्वस्थ रखना। इसका अभ्यास करने से चिकित्सकों को अपने व्यक्त‍िगत एवं व्यावसायिक- दोनों प्रकार के जीवन में लाभ होता है। दूसरों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ती है और रोगों का निदान भी अपेक्षाकृत सही होने लगता है और चि‍कित्सकीय प्रभावकारिता भी उन्नत होती है। अनेक साधक-चि‍कित्सक अपने रोगियों का दवा आदि से उपचार करने के अतिरिक्त उन्हे ‘आनापान’ भी सिखाते हैं, जो कि विपश्यना के अभ्यास में एक प्रारंभि‍क कदम है। इस प्रकार रोगियों को प्रोत्साहित किया जाता है कि वे अपने स्वास्थ्य और अपनी भलाई की जिम्मेदारी स्वयं उठायें। वि‍पश्यना सचमुच एक ऐसी स्वास्थ्य-लाभ करने की विधि वा मार्ग है जो सबके लिए समान रूप से कल्याणकारी है- स्वंय के लिए भी तथा औरों के लिए भी।
   विपश्यना ‘जीवन में दु:ख है’ की मूलभूत सच्चाई को स्वीकार करती है तथा उ‍चि‍त पुरूषार्थ द्वारा पूर्ण मुक्त‍ि (निर्वाण) के उदे्श्य को प्राप्त करने की प्रेरणा देती है। इस प्रकार निरंतर आत्म-विकास का साधन बनते हुए संपूर्ण मानसिक स्वास्थ प्राप्त‍ि का कारण बनती है। इसीलिए स्वास्थ्य के क्षेत्र में शोध का मुख्य केंद्र-बिंदु विपश्यना के मनोवैज्ञानिक लाभों का अध्ययन एवं मूल्यांकन करना है कि किस कदर साधक के व्यक्त‍ित्व एवं दृष्ट‍िकोण में बदलाव आने लगता है; अपने घर-परिवार में, अध्ययन-प्र‍शि‍क्षण के मामले में और कामकाज की जगह पर साधक की कार्यकुशलता, सहयोग की भावना आदि में क्या विकास होता है- संक्षेप में कहा जाय तो संपूर्ण जीवन की गुणवत्ता (quality of life) पर पड़ने वाले प्रभाव को परखता होता है। अधि‍क जानकारी के लिए देखें साइट www.dhamma.org