Thursday, July 30, 2015

स्वास्थ्य, चिकित्सक एवं विपश्यना - डॅा. आर. एम. चोखानी


      अंग्रेजी भाषा का शब्द (“health”) एंग्लो-सैक्सन शब्द (“hal”) से निकला है जिसका अर्थ होता है ‘whole’ (संपूर्ण) और इस प्रकार इससे आशय निकलता है किसी व्यक्त‍ि का समूचा अस्त‍ित्व। हिंदी भाषा में (health) का पर्याय ‘स्वास्थ्य’ होता है और ‘स्वस्थ’ का अर्थ है ‘स्व’ में स्थि‍त। विश्व स्वास्थ्य संगठन (world Health Organisation) द्वारा दी गयी परिभाषा के अनुरूप (health) (हैल्थ) को जैविक-मानसिक-सामाजिक मॅाडल के रूप में दर्शाया जाता है जिसमें जैविक,  मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक पक्ष किसी सक्रिय एवं एक दूसरे को प्रभावित करने बाली प्रणाली में एक-साथ कार्यशील होते हैं। इनमें मनोविज्ञान या मन का महत्व सर्वाधि‍क है क्योंकि यह मनुष्य के पूरे जीवन और उसके कार्यकलापों की केंद्रीय परिचालन शक्त‍ि है। तदनुसार (psycho-somatics) (मनो-दैहिकी), जो कि मन और शरीर के संबंध का अध्ययन करती है, स्वास्थ्य-संबंधी विज्ञानों का सिरमौर मानी जाती है। इसके कई प्रभेद हैं जैसे-मनो-स्त्रायु-प्रतिरक्षण विज्ञान (psycho-neuro-immunology), मनो-अंतर्स्रावी-ग्रंथि विज्ञान (psycho-endocrinology), मनो-हृदय विज्ञान (psycho-cardiology), मनो-चर्म विज्ञान (psycho-dermatology) इत्यादि । सकारात्मक स्वास्थ्य (positive health), जो कि जीवन की पूरी गुणवत्ता (quality of life) को लेकर चलने का भाव है, एक ऐसी आदर्श स्थि‍ति है जिसे प्राप्त करने के लिए मानव जाति सदा प्रयत्नशील रही है।
  विपश्यना साधना अपने मन वा शरीर की सीमा के भीतर आत्म-निरीक्षण करने की एक वैज्ञानिक विधि है। यह अपने विचारों, भावनाओं, निर्णयों और संवेदनाओं पर काम करने वाले प्रकृति के सार्वभौम नियमों (धर्म) को जानने वा उनका पालन करने से स्वास्थ्य-लाभ करने की विधि है। इसका उद्देश्य  है कि मन की नकारात्मकताओं और पूर्वाग्रहों को पूरी तरह से दूर कर दिया जाय जिससे मन की सच्ची शांति प्राप्त हो और सुखी तथा स्वस्थ जीवन बिताया जा सके। विपश्यना के शि‍विर हर साधक के लिए खुले है चाहे उसकी कैसी भी आस्था, राष्ट्रीयता, वर्ण अथवा पृष्ठभूमि हो। यहां तक कि रोगग्रस्त भी भाग ले सकते है यदि वे आचार संहिता का पालन करने, साधना-संबंधी निर्देशों को समझने और उनके अनुसार अभ्यास करने में समर्थ हों। इसके अलावा केंद्र पर ऐसे रोगी की विशि‍ष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति का उचित प्रबंध भी संभव होना चाहिए। शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के कई रोगों में विपश्यना लाभकारी सिद्ध हुई है। इससे संबं‍धि‍त काफी शोध-सामग्री उपलब्ध है। पंरतु इस प्रकार के स्वास्थ्य-संबंधी लाभ विपश्यना के उपफल (byproduct) समझे जाते है और यह परामर्श दिया जाता है कि इनको साधना का मुख्य उदे्श्य न समझा जाय जिससे साधना के लिए किये जाने वाले प्रयत्न कहीं निष्फल न हो जायॅं। स्वस्थ होना- रोग से छुटकारा पाना नहीं, बल्क‍ि मानवीय दु:ख का वास्तविक रूप से निर्मूलन-य‍ह विपश्यना का उदे्श्य है। इसके अभ्यास से साधक का मानस मैत्री, करूणा, मुदिता वा समता भाव से भर जाता है। जीवन के प्रति उसका दृष्ट‍िकोण पूरी तर‍ह से बदल जाता है जिससे वह सभी प्रकार के उतार-चढ़ाव, यहां तक कि रोग और मृत्यु को भी शांति और मृत्यु को भी शांति और धैर्य से झेल सकता है।
   चिकित्सा-शास्त्र का अभ्यास, विज्ञान और कला इन दोनों पक्षों का संयोजन है। चिकित्सक को न केवल रोग के निदान और इसके उपचार में निपुण होना आवश्यक है बल्क‍ि  उसमें ऐसे दुखि‍यारों के प्रति प्रेम और करूणा पर आधारित मानवोचित समझ भी होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त हर समय मानवीय दु:खों से वास्ता पड़ते रहने पर व्यावसायिक अकर्मण्यता (professional burn-out) की स्थि‍ति आ सकती है यदि चिकित्सक नियमित रूप से अपनी स्वायत्तता और अपने ज्ञान को विकसित करने का प्रयत्न न करता रहे। ऐसे पुरूषार्थ से ही वह दूसरों के जीवन में उतार-चढ़ावों की स्थि‍ति में एक व्यावसायिक लंगर (professional anchor) के रूप में काम आ सकने लायक अपनी क्षमता को बढ़ा सकता है। जैसा कि एक कहावत है- “चि‍कित्सक, अपनी चिकित्सा कर!”  विपश्यना इसके लिए रास्ता दिखाती है।
 भि‍न्न-भि‍न्न प्रकार की चिकित्सा पद्धतियों के चि‍कित्सा के लिए विपश्यना सार्थ‍क भी है और स्वीकार्य भी, क्योंकि इन सब का उदे्श्य तो समान ही है, अर्थात लोगों को स्वस्थ करना और स्वस्थ रखना। इसका अभ्यास करने से चिकित्सकों को अपने व्यक्त‍िगत एवं व्यावसायिक- दोनों प्रकार के जीवन में लाभ होता है। दूसरों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ती है और रोगों का निदान भी अपेक्षाकृत सही होने लगता है और चि‍कित्सकीय प्रभावकारिता भी उन्नत होती है। अनेक साधक-चि‍कित्सक अपने रोगियों का दवा आदि से उपचार करने के अतिरिक्त उन्हे ‘आनापान’ भी सिखाते हैं, जो कि विपश्यना के अभ्यास में एक प्रारंभि‍क कदम है। इस प्रकार रोगियों को प्रोत्साहित किया जाता है कि वे अपने स्वास्थ्य और अपनी भलाई की जिम्मेदारी स्वयं उठायें। वि‍पश्यना सचमुच एक ऐसी स्वास्थ्य-लाभ करने की विधि वा मार्ग है जो सबके लिए समान रूप से कल्याणकारी है- स्वंय के लिए भी तथा औरों के लिए भी।
   विपश्यना ‘जीवन में दु:ख है’ की मूलभूत सच्चाई को स्वीकार करती है तथा उ‍चि‍त पुरूषार्थ द्वारा पूर्ण मुक्त‍ि (निर्वाण) के उदे्श्य को प्राप्त करने की प्रेरणा देती है। इस प्रकार निरंतर आत्म-विकास का साधन बनते हुए संपूर्ण मानसिक स्वास्थ प्राप्त‍ि का कारण बनती है। इसीलिए स्वास्थ्य के क्षेत्र में शोध का मुख्य केंद्र-बिंदु विपश्यना के मनोवैज्ञानिक लाभों का अध्ययन एवं मूल्यांकन करना है कि किस कदर साधक के व्यक्त‍ित्व एवं दृष्ट‍िकोण में बदलाव आने लगता है; अपने घर-परिवार में, अध्ययन-प्र‍शि‍क्षण के मामले में और कामकाज की जगह पर साधक की कार्यकुशलता, सहयोग की भावना आदि में क्या विकास होता है- संक्षेप में कहा जाय तो संपूर्ण जीवन की गुणवत्ता (quality of life) पर पड़ने वाले प्रभाव को परखता होता है। अधि‍क जानकारी के लिए देखें साइट www.dhamma.org

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