Monday, August 9, 2021

ओलंपिक और विश्वगुरू....

ओलंपिक और विश्वगुरू.... टोक्यो में चल रहे ओलंपिक खेलों की मेडल टैली में कल शामतक भारत अंडर 50 में भी नहीं था! फिर सूबेदार नीरज चोपड़ा ने पूरे दम के साथ भाला फेंका और हम 67वें पोजिशन से 20 अंकों की उछाल लेकर सीधे 47वें पोजिशन पर आ गए! एक गोल्ड मैडल और 20 अंकों की उछाल!!! 138 करोड़ की आबादी वाला देश कल से सीना फुलाए घूम रहा है! क्रेडिट लेने देने की होड़ सी मची हुई है! हर किसी में सूबेदार साहब से जुड़ने की ललक दिखाई पड़ रही है! क्योंकि उन्होंने गोल्ड दिलाया है! 138 करोड़ की आबादी में मात्र एक स्वर्ण पदक!! क्या ये गर्व का विषय है? पदक तालिका पर नजर डालेंगें तो आप पाएंगे कि हम कुल 7 ओलंपिक पदकों (स्वर्ण, रजत और कांस्य) के साथ 47वें स्थान पर हैं! ....और जो देश प्रथम (चीन-38 स्वर्ण पदक) द्वितीय (USA-36 स्वर्ण पदक व तृतीय स्थान (जापान-27 स्वर्ण पदक) पर हैं उनके सिर्फ स्वर्ण पदकों की संख्या हमारे कुल पदकों की संख्या से लगभग 4 गुनी या 5 गुनी है! शीर्ष पर बढ़त बनाये हुए इन देशों के साथ ऐसा नहीं है कि वे सिर्फ खेलों में ही अच्छा कर कर रहे हैं और बाकी क्षेत्रों में फिसड्डी हैं! इनकी विकास दर, औद्यिगिक तकनीक, रेलवे, हाईवे, सैन्यशक्ति ....यहाँ तक कि शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं- कुछ भी उठा लीजिये! ये देश इन क्षेत्रों में भी हमसे कई गुना बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं! दुनिया के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय इन्ही के पास हैं! पूरी दुनिया को बेहतर फाइटर जेट, पनडुब्बी और हवाई जहाज से मेट्रोरेल तकनीक, कंप्यूटर तकनीक और स्पेस तकनीक यही लोग मुहैया करा रहे हैं! ...और खेलों में भी इनका कोई सानी नहीं है! इसी को सर्वांगीण विकास कहते हैं! हम तो इनके पासंग में भी नहीं हैं! सिर्फ जनसंख्या के मामले में बढ़त बनाये हुए हैं हम! इतने बड़े फेल्योर का जिम्मेदार किसी एक को नहीं ठहराया जा सकता! हम सब इस हमाम में नँगे हैं! हमने कभी इन मुद्दों पर बात ही नहीं की! हम नाली, खड़ंजा, PCC रोड, वृद्धावस्था पेंशन, बेरोजगारी भत्ता, आधार, पैन, जनधन, जातिप्रमाण पत्र, आय प्रमाणपत्र, मिड डे मील में मिलने वाला अंडा, आंगनवाड़ी, भोज, भण्डारा, बोलबम, दरगाह, हिन्दू, मुसलमान, भगवा, हरा- इन्ही सब में उलझकर रह गए! जिसका नतीजा है कि हमारी आजादी के महज दो साल पहले दो-दो परमाणु हमले झेल चुका देश आज न सिर्फ ओलंपिक की मेजबानी कर बल्कि अपनी सरजमीं पर पदक भी जीत रहा है! ...और आजादी के 74 साल बाद हमारे देश की 80 करोड़ जनता 5 किलो गेंहू के लिए लाइनों में खड़ी है! ...और ख़ुशी ख़ुशी खड़ी है! क्योंकि हमने न खेलों को सिरियसली लिया और न ही पढाई लिखाई और तकनीक को! जिन्होंने सिरियसली लिया वे आज हर जगह अच्छा कर रहे हैं! इस ओलंपिक समापन के बाद हमारे खिलाडी वापस आएंगे! हर राज्य अपनी (बेशर्मी की) क्षमता के मुताबिक उनको पुरस्कृत करेगा! माननीय लोग उनके साथ फोटो खिंचवायेंगे! कुछ मनगढ़ंत कहानियां रची जाएँगी! बैनर पोस्टर बनेगा....और कुछ दिनों बाद हम सब फिर से उसी हिन्दू मुसलमान, गौरी गणेश, मुल्ला मौलवी में उलझ जायेंगे! लेकिन याद रखिए! खिलाड़ियों के प्रदर्शन के बदले में माननीयों द्वारा बांटे जाने वाले कैश, फ्लैट और नौकरी तथा देशवासियों द्वारा फील किया गया गर्व- ये सब दरअसल अपनी अपनी नाकामी छिपाने के तरीके हैं! इससे ज्यादा कुछ नहीं है! ...और जब तक ऐसा चलता रहेगा, विश्वगुरु सिर्फ ओलंपिक ही नहीं, हर प्रतिस्पर्धा में मेडल के लिए तरसते रहेंगे! (ये माइकल हमारे यहाँ होता तो हमारे माननीय अबतक इसको राष्ट्रपति बना दिए होते)

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