Monday, September 6, 2021

बेनजीर भुट्टो ने सीखा ध्‍यान

जब बेनजीर ने सीखी विपश्यना - डॉ. रूप ज्योति बेनजीर भुट्टो ने विपश्यना के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था और चाहती थीं कि वहीं उन्हें विपश्यना की तकनीक सिखाई जाए। उन्हें समझाया गया कि इसके लिए किसी 10 दिवसीय शिविर में सम्मिलित होना अनिवार्य है। उनके पास इतना समय नहीं था और वे चाहती थीं कि कुछ न कुछ अभी सिखाया जाए। विपश्यना लोगों के मन को एकाग्र करके, विकारों की जड़ों तक ले जाती है और उन्हें उखाड़कर सदा के लिए समाप्त कर देती है। सन्‌ 1994 की गर्मियों के दौरान काठमांडू में मुझे गृह मंत्रालय से फोन आया। पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो उस समय नेपाल की सरकारी यात्रा पर आई हुई थीं। उन्होंने 'धर्मशृंग' विपश्यना केंद्र देखने की इच्छा व्यक्त की। सन्‌ 1994 की गर्मियों के दौरान काठमांडू में मुझे गृह मंत्रालय से फोन आया। पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो उस समय नेपाल की सरकारी यात्रा पर आई हुई थीं। उन्होंने 'धर्मशृंग' विपश्यना केंद्र देखने की इच्छा व्यक्त की। विपश्यना के सभी सहायक आचार्य, ट्रस्टी और कार्यकर्ता बड़ी उत्सुकता से उनके पधारने की प्रतीक्षा करने लगे। सयाजी ऊबा खिन की परंपरा में विपश्यनाचार्य श्री सत्यनारायण गोयन्का द्वारा सिखाई जा रही विपश्यना के बारे में ठीक से जानकारी देने और केंद्र दिखाने की हमने व्यवस्था कर ली थी। परंतु दुर्भाग्य से उनके आगमन का कार्यक्रम रद्द हो गया। किसी ने उन्हें यह गलत सूचना दे दी कि आधे घंटे तक कार की यात्रा के बावजूद उन्हें 45 मिनट तक पैदल चलना पड़ेगा। उनके पास उतना समय नहीं था, इसलिए यात्रा स्थगित कर दी, जबकि 30 मिनट में केंद्र तक आसानी से पहुँचा जा सकता है। लगभग दो वर्ष बाद नेपाल के विदेश मंत्रालय द्वारा मुझसे पुनः संपर्क किया गया। प्रधानमंत्री शेर बहादुर देऊबा का पाकिस्तान की राजकीय यात्रा का कार्यक्रम बना। उसमें बेनजीर भुट्टो द्वारा विशेष रूप से आग्रह किया गया कि किसी विपश्यनाचार्य को साथ लाएँ। इस निवेदन परहमारे प्रमुख आचार्य गोयन्काजी ने मुझे तथा सुश्री नानी मैयों मानंधर को निर्देश दिया कि हम दोनों इस प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बनें। बेनजीर भुट्टो ने हमें सूचना भिजवाई कि जैसे ही प्रतिनिधिमंडल का काम पूरा होगा, वे विपश्यना के बारे में हमसे अलग से मिलेंगी। नेपाली प्रतिनिधि मंडल की यात्रा के आखिरी दिन दोपहर बाद उन्हें कराची जाना था और वहाँ से काठमांडू। बेनजीर के आव्हान पर मैं और नानी मैयों अपराह्न 3 बजे उनसे अलग से मिले, जबकि प्रतिनिधिमंडल के शेष सदस्य आगे की यात्रा पर रवाना हो गए। बेनजीर भुट्टो ने विपश्यना के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था और चाहती थीं कि वहीं उन्हें विपश्यना की तकनीक सिखाई जाए। उन्हें समझाया गया कि इसके लिए किसी 10 दिवसीय शिविर में सम्मिलित होना अनिवार्य है। उनके पास इतना समय नहीं था और वे चाहती थीं कि कुछ न कुछ अभी सिखाया जाए। हमने गोयन्काजी से अनुमति ली और नानी मैयों ने उन्हें आनापान सिखाया। बेनजीर ने इसका अभ्यास आरंभ कर दिया और पाया कि सचमुच बड़ी शांतिदायक है। उन्होंने बताया कि वे गत कई दिनों से लगातार सो नहीं पाई थीं, जबकि इसके कुछ क्षणों के अभ्यास से ही उन्हें इतनी शांति मिली कि उन्हें नींद आने लगी और उन्होंने हमसे सोने की अनुमति ली। कुछ घंटों की नींद के बाद वे लौटकर आई और हमने देखा कि वे बिलकुल तरोताजा महसूस कर रही थीं तथा बहुत खुश थीं। उन्होंने कहा कि आनापान करते समय उन्हें उजला प्रकाश दिखाई दिया। हमने उन्हें विपश्यना के प्रमुख प्रभावों के बारे में समझाया कि यह एक ऐसी विधिहै जो मनुष्य मात्र के लिए उपयोगी और लाभदायक है। यह न कोई कर्मकांड है और न किसी संप्रदाय विशेष के लिए है। यह तो एक ऐसी सार्वजनीन विद्या है जो सभी जाति, वर्ग, संप्रदाय और देश-काल के लोगों के लिए समान रूप से ग्रहण करने योग्य है। विधा ऐसी है जो लोगों के मन को एकाग्र करके, विकारों की जड़ों तक ले जाती है और उन्हें उखाड़कर सदा के लिए समाप्त कर देती है। इस प्रकार भय, क्रोध, चिंता, ईर्ष्या, मात्सर्य, वासना आदि सभी विकारों से छुटकारा पाने में मदद करती है। विपश्यना हमें सिखाती है कि हम कैसे हमारे अहंकार को दूर करें और सच्चाई के सहारे चलते हुए अपने जीवन को सही माने में शांत और सुखी बना लें। विपश्यना व्याकुलता को परे रखकर, जीवन जीने की कला है। कुछ देर तक विपश्यना के बारे में हमारी बात और चली कि वे कहाँ दस दिन का समय निकालकर किसी शिविर का लाभ ले सकेंगी। हमने अपने साथ लाया हुआ साहित्य, टेप्स और वीडियो भेंट किया। तब तक शाम हो चुकी थी और इस्लामाबाद से कराची की अंतिम उड़ान में बहुतथोड़ा समय शेष था। हम दोनों हवाई अड्डे की ओर चल पड़े। प्रधानमंत्री के निर्देश पर हमारे लिए तो सीटें सुरक्षित रखी गई थीं। जैसे ही हम सीट पर बैठे, विमान ने उड़ान भर दी। कराची के हवाई अड्डे पर उतरते ही समाचार मिला कि बेनजीर को अपदस्थ कर दिया गया है। उनके प्रधानमंत्रित्वकाल में उनसे मिलने वाले हम अंतिम दो मेहमान थे। गत दिनों जब उनकी हत्या का समाचार मिला, तब मुझे बहुत दुःख हुआ, परंतु यह समझकर संतोष हुआ कि उन्हें आनापान की साधना तो मिल चुकी थी, जो विपश्यना का एक प्रमुख अंग है। (लेखक विपश्यना के आचार्य और नेपाल की शाही सरकार के वित्तमंत्री रह चुके हैं। नेपाल के विपश्यना केंद्रों के संचालन में उनकी प्रमुख भूमिका रही है।)

No comments: