Saturday, July 4, 2015

’स्वयं को जानो’ : विपश्यना का मेरा अनुभव - सिस्टर विनया, ईसाई साध्वी तथा सहायक आचायी, विपश्यना


   मैंने अपना पहला शि‍विर बंगलौर के फादर एंथनी डि मेलो के कुछ व्याख्यानों से प्रेरित होकर सन १९७८ में किया था। वे भारत के पहले ईसाई पादरियों में से थे जिन्होंने विपश्यना शि‍विर किया था। धम्मगिरि में दस-दिवसीय शि‍विर ने मेरे जीवन को बदल दिया और इसे एक नयी दिशा प्रदान की ।
  भारतीय संस्कृति से ईसाई संस्कृति का मिश्रित अध्ययन करते समय मेरे अंतर में कुछ संघर्ष की स्थ‍िति पैदा हुई। मुझे कुछ कार्यो से, जिन पर मेरा विश्वास था कि वे समाज के लिए अच्छे है, अंदर से असंतोष हो रहा था। विपश्यना द्वारा जागृत अंतर्दृष्ट‍ि ने मुझे इस संघर्ष की जड़ तक पहॅुचाया और मेरे इरादों को दृढ़ किया। फलत: मैं अधि‍क सामंजस्य के साथ काम कर पायी। एक प्रकार की अपूर्व शांति मिली। विपश्यना की सहायता से वे दीवारें टूट गयीं जो मुझे अपने अंतरतम को जानने में बाधक बनी हुई थी।
    ‘अपने आपको जानो’ यह कहावत ईसाइयों में बहुत प्रसिद्ध है। विपश्यना के बारे में मेरा अनुभव है कि यही एक सही वैज्ञानिक और कारगर विधि है जिसके द्वारा कोई भी अपने आपको सही तरीके से जान सकता है और खुशि‍यों से भरा, लाभकारी जीवन जी सकता है।
   विपश्यना नैतिकता को बढ़ावा देने, मन का मालिक बनने और मन के शुद्धि‍करण में सहायक है। यह मनुष्य के लिए दूसरों के प्रति प्यार और करूणा को बढ़ावा देने में सहायक है। मेरे विचार से विपश्यना ईसाई धर्मग्रंथो का ही क्रियात्मक अभ्यास है- कैसे अच्छी जिंदगी जिये, अपने लिए और दूसरों के लिए भी ।
  मुझे लगता है कि विपश्यना का सार्वजनीन पक्ष बड़ा आकर्षक है। आखि‍रकार विपश्यना सीधे प्रकृति के नियमों का अनुभव कराती है। यही नियम संपूर्ण मानव जाति पर लागू होते हैं, सिवाय कुछ विशेष मान्यताओं के जिन पर चलना मनुष्य स्वयं चुनता है।
  मैं विपश्यना के संपर्क में आने के बाद कुछ समय तक यूरोप की एक मोनेस्ट्री में रही। तुलनात्मक रूप से वहां का रहन-सहन उच्च प्रकार का और  सुविधाएं बड़ी आकर्षक थी, लेकिन मुझे एक अजीब-सा खालीपन लगता था। मैं भारत लौटी, विपश्यना के कुछ और शि‍विर किये और इस विधि में अपने आपको प्रतिष्ठ‍ित किया। इससे मुझे एक प्रकार की शांति व शक्त‍ि प्राप्त हुई जिससे मेरा आंतरिक खालीपन दूर हो गया- ऐसा खालीपन जो हममें से बहुतों को समय-समय पर अनुभव होता रहता है।
 ब्राजील की एक साध्वी और मेरी परिचित विपश्यी सा‍धि‍का ने कुछ ही समय पहले मुझे लिखा कि वह जल्दी ही भारत आ रही है और सबसे पहले विपश्यना का दूसरा शि‍विर लेना चाहती है। अन्य पादरी व साध्व‍ियां जो शि‍विर कर चुके हैं, का कहना है कि विपश्यना से उनका जीवन अधि‍क समृद्ध हो गया है। विपश्यना का एक ऐसा सार्वजनीन आकर्षण है जो सभी धर्मो, राष्ट्रों और संस्कृतियों के आर-पार चला जाता है। नि: संदेह विपश्यना सुखी जीवन-यापन की कला है, एक अच्छा मानव बनने की कला है जो अपने लिए भी लाभकारी है और दूसरों के लिए भी।
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